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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ तत्त्वार्थवृत्ति-प्रस्तावना है। मेहके समान अन्य सात पर्वतोंमें भी देव रहते हैं । त्रयस्त्रिश स्वगलोक का विस्तार ८०००० योजन है। वहां चारों दिशाओंके बीच में वज्रपाणिदेव रहते हैं। त्रायस्त्रिशलोकके मध्यभागमें सुदर्शन नामका सुवर्णमय नगर है। इस नगरके मध्यमें वैजयन्त नामका इन्द्रका प्रासाद है । यह नगर बाह्य भागमें चार उद्योनोंसे सुशोभित है। इन उद्यानोंकी चारों दिशाओंमें बीस योजनके अन्तरालसे देवोंके क्रीड़ास्थल हैं। पूर्वोत्तर दिग्भागमें पारिजात देवद्रुम है। दक्षिणपश्चिम भागमें सुधर्मा नामकी देव सभा है । त्रायस्त्रिंश लोकसे ऊपर याम, तुषित, निर्माणरति, और परनिर्मितवशवर्ती देव विमानोंमें रहते हैं। महाराजिक और आयस्त्रिशदेव मनुष्योंके समान कामसेवन करते हैं। याम आलिंगनसे, तुषित पाणिसंयोगसे, निर्माणरति हास्यसे और परनिर्मितवशवर्ती देव, अवलोकनसे कामसुखका अनुभव करते हैं। कामधातुमें देव पांच या दस वर्षके बालक जसे उत्पन्न होते हैं। रूपधातुमें पूर्ण शरीरधारी और वस्त्र सहित उत्पन्न होते हैं। ऋद्धिबल अथवा अन्य देवोंकी सहायताके बिना देव अपने ऊपर देवलोकको नहीं देख सकते । जम्बूद्वीपवासी मनुष्योंका परिमाण (शरीरकी ऊँचाई) ३।। या ४ हाथ है। पूर्वविदेहवासी मनुष्यों का परिणाम ७ या ८ हाथ है। गोदानीयवासियों का परिमाण १४ या १६ हाथ है । और उत्तर कुरुवासी मनुष्योंका परिमाण २८ या ३२ हाथ है। चातुर्महाराजिक देवोंका परिमाण पावकोश त्रायस्त्रिशदेवोंका आधाकोश, यामोंका पौनकोश, तुषितोंका एक कोश, निर्माणरतियोंका सवाकोश और परिनिर्मितवशवर्ती देवोंका परिमाण डेड़ कोश है। .. ____ उत्तरकुरुमें मनुष्योंकी आयु एक हजार वर्ष है । पूर्व विदेहमें ५०० वर्ष आयु है । गोदानीय में २५० वर्ष आयु है । लेकिन जम्बू-द्वीपमें मनुष्योंकी आयु निश्चित नहीं है। कल्पके अन्तमें दस वर्ष की आयु रह जाती है। उत्तरकुरुमें आयुके बीचमें मृत्यु नहीं होती है । अन्य पूर्वविदेह आदि द्वीपोंमें तथा देवलोकमें बीचमें मृत्यु होती है। वैदिक परम्परा योगदर्शन-व्य सभाष्यके आधारसे--- भुवन विन्यास-लोक सात होते हैं। प्रथम लोकका नाम भूलोक है । अन्तिम अवीचि नरकसे लेकर मेरुपृष्ठ तक भूलोक है । द्वितीय लोक का नाम अन्तरिक्ष लोक है। मेरुपृष्ठसे लेकर ध्रुव तक अन्तरिक्ष लोक है। अन्तरिक्षलोकमें ग्रह, नक्षत्र और तारा हैं। इसके ऊपर स्वर्लोक है। स्वर्लोकके भेद है-माहेन्द्रलोक, प्राजापत्यमहर्लोक, और ब्रह्मलोक आदि । ब्रह्मलोकके तीन भेद हैं-जनलोक, तपोलोक और सत्यलोक । इस प्रकार स्वर्लोकके पांच भेद होते हैं। अवीचिनरकसे ऊपर छह महानरक हैं । उनके नाम निम्न प्रकार है-महाकाल, अम्बरीष, रौरव, महारौरव, कालसूत्र और अन्धतामिस्र । ये नरक क्रमशः धन (शिलाशकल आदि पार्थिव पदार्थ), सलिल, अनल, अनिल, आकाश और तमके आधार (आश्रय) हैं। महानरकोंके अतिरिक्त कुम्भीपाक आदि अनन्त उपनरक भी हैं । इन नरकोंमें अपने अपने कर्मोके अनुसार दीर्घायुवोले प्राणी उत्पन्न होकर दुःख भोगते हैं। अवीचिनरकसे नीचे सात पाताललोक हैं जिनके नाम निम्न प्रकार है-महातल, रसातल, अतल, सुतल, वितल, तलातल और पाताल । । भूलोकका विस्तार-इस पृथ्वीपर सात द्वीप हैं। भूलोकके मध्यमें सुमेरु नामक स्वर्णमय पर्वतराज है जिसके शिखर रजत, वैडूर्य, स्फटिक, हेम और मणिमय' हैं । सुमेरु पर्वतके दक्षिणपूर्वमें जम्बू नामका वृक्ष है जिसके कारण लवणोदधिसे वेष्टित द्वीपका नाम जम्बूद्वीप है। सूर्य निरन्तर मेरुकी प्रदक्षिणा करता रहता है। मेरुसे उत्तरदिशामें नील श्वेत और शृंगवान् ये तीन पर्वत हैं। प्रत्येक पर्वतका विस्तार दो हजार योजन है। इन पर्वतोंके बीचमें रमणक, हिरण्यमय और उत्तरकुरु ये तीन क्षेत्र हैं। प्रत्येक क्षेत्रका विस्तार नौ योजन है । नीलगिरि मेरुसे लगा हुआ है। नीलगिरिके उत्तरमें रमणक क्षेत्र है :। श्वेत For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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