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अनुक्रम
६
निक्षेप
६४ ६५-६७
जीव
१६
१. अनुक्रम
तत्वाधिगम के उपाय २. शुद्धिपत्र ३. सम्पादकीय
प्रमाण, नय और स्याद्वाद ४. प्रस्तावना
नयनिरूपण तत्त्व और तत्त्वाधिगम के उपाय
स्याद्वाद
६७ मक्खलि गोशालका मत
प्रो. बलदेव उपाध्यायके मत की समीक्षा
६९-७१ पूरण कश्यप का मत प्रधकात्यायनका मत
डॉ० देवराज के मतकी आलोचना संजय वेल टिपूत्तका मत
महापण्डित राहुल सांकृत्यायनके बुद्ध मत
मतका विचार
७१-७२ निग्गन्थनाथपुत
१२-१४ बुद्ध और संजय
७२-७६ तत्त्वनिरूपण
१४
सप्तभंगी
श्री सम्पूर्णानन्दके मतकी समालोचना ७७ दुःखसत्य आदिकी व्याख्या
अनेकान्त दर्शनका बुद्ध का दृष्टिकोण
सांस्कृतिक आधार
७८-८३ निग्गन्थनाथपुन महावीर १५-१६
डॉ० सर राधाकृष्णन्के मतकी समीक्षा ८०-८१
सदादि अनुयोग जीवको अनादिबद्ध माननेका कारण १७-२०
ग्रन्थका बाह्य स्वरूप
८४-८६ आत्मा का स्वरूप
२०-२१ लोकवर्णन और भूगोल
८६-१३ आत्मदृष्टि ही बन्धोच्छेदिका २१-२४
वैदिक परम्परा-योगदर्शन आत्माके तीन प्रकार
व्यासभाष्यके आधार से
८८-९० बन्धका स्वरूप
वैदिक परम्परा श्रीमद्भागवतके बन्धहेतु आस्रव
आधार से
९०-१२ कषाय
बैदिक परम्परा विष्णुपुराण के आधारसे ९२-९३ आत्रव के दो भेद
२८-३० प्रस्तुत वृत्ति
९३-९७ मोक्षतत्त्वनिरूपण
भाषा और शैली ग्रन्थकार
९८-९९ मोक्षके कारण
श्रुतसागरमूरि संवर
४-विषयसूची
१०३-१०८ मोक्षके साधन
५-मूलग्रन्थ सम्यग्दर्शनका सम्यग्दर्शन
६-तत्वार्थवत्ति-हिन्दीसार
३२७-५११ परम्पराका सम्यग्दर्शन
७-तत्वार्थसूत्राणामकारादिकोशः ५१३-५१७ प्राचीन नवीन या समीचीन ३९-४१ ८-तत्त्वार्थसूत्रस्थशब्दानामकारानुक्रमः ५१८-५३१ संस्कृतिका सम्यग्दर्शन- ४१-४४ . ९-तत्त्वार्थवृत्तौ समागतानामुद्धतवाक्यानामअध्यात्म और नियतिवादका सम्यग्दर्शन ४४-५४
काराद्यनुक्रमः
५३२-५३७ निश्चय और व्यवहारका सम्यग्दर्शन ५४-५७ १०-तत्त्वार्थवृत्तिगताः केचिद् विशिष्टाः परलोकका सम्यग्दर्शन ५७-५९ / शब्दाः
५३८ ४६ कर्मसिद्धान्तका सम्यग्दर्शन
५९-६२ ११-तन्वार्थवृत्तिगत्ता ग्रन्था ग्रन्थकाराश्च ५४७ शास्त्रका सम्यग्दर्शन ६२-६३ | १२-ग्रन्थसङकेलविवरण
५४८
३२
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