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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०।२ दसवाँ अध्याय ५११ क्षेत्रमें सिद्ध दो प्रकारसे होते हैं-जन्मसे और संहरणसे। संहरणसिद्ध अल्प हैं और जन्मसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । क्षेत्रके कई भेद हैं-कर्मभूमि, अकर्मभूमि, समुद्र, द्वीप, ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यग् लोक । उनमें से ऊर्ध्वलोकसिद्ध अल्प हैं, अधोलोकसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं और तिर्यकलोकसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । समुद्रसिद्ध सबसे कम हैं और द्वीपसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । विशेषरूपसे लवणोदसिद्ध सबसे अल्प हैं, कालोदसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार जम्बू द्वीपसिद्ध, धातकीखण्डद्वीपसिद्ध और पुष्करार्धद्वीपसिद्ध क्रमस संख्यातगुणे संख्यातगुणे अधिक हैं। कालकी अपेक्षा अल्पबहुत्व-निश्चय नयसे जीव एक समयमें सिद्ध होते हैं अतः अल्पबहुत्व नहीं है । व्यवहारनयसे उत्सर्पिणी काल में सिद्ध होनेवाले अल्प हैं और अवसर्पिणी काल में सिद्ध होनेवाले उनसे कुछ अधिक हैं। अनुत्सर्पिणी कालमें सिद्ध होनेवाले उनसे कुछ अधिक हैं। और अनुत्सर्पिणी तथा अनवसर्पिणी काल में सिद्ध होनेवाले उनसे संख्यातगुणे है। गतिकी अपेक्षा अल्पबहुत्व-निश्चयनयसे सब सिद्धगतिमें सिद्ध होते हैं अतः अल्पबहुत्व नहीं है। व्यवहारनयसे भी अल्पबहुत्व नहीं है क्योंकि सब मनुष्यगति मे सिद्ध होते हैं। कान्तरगति (जिसगतिसे मनुष्यगतिमें आकर मोक्ष प्राप्त किया हो) की अपेक्षा अल्पबहुत्व इस प्रकार है-तिर्यग्गतिसिद्ध अत्यल्प है। मनुष्यगतिसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । नरकगतिसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं। और देवगतिसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं। वेदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व-निश्चय नयसे सब अवेदसे सिद्ध होते हैं अतः अल्पबहुत्व नहीं है । व्यवहार नयसे नपुंसकवेद सिद्ध सबसे कम हैं। स्त्रीवेदसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं और पुंवेदसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । कहा भी है ____ "नपुंसकवेदवाले बीस, स्त्रीवाले चालीस और पुरुषवेवाले अड़तालीस जीव सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार आगमके अनुसार तीर्थ चारित्र, आदिकी अपेक्षा अल्पबहुत्व जान लेना चाहिये। दसवाँ अध्याय समाप्त For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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