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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [ ४।३२-३८ आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु अवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥ ३२ ॥ __ आरण और अच्युत स्वर्गसे ऊपर नव |वेयकों में, नव अनुदिशोंमें और विजय आदि विमानों में एक एक सागर बढ़ती हुई आयु है । सूत्र में नव शब्दका ग्रहण यह बतलाता है कि प्रत्येक ग्रेवेयकमें एक एक सागर आयुकी वृद्धि होती है । 'विजयादिषु' में आदि शब्द के द्वारा नव अनुदिशोंका ग्रहण होता है। ___ इस प्रकार प्रथम प्रैवेयकमें तेईस सागर और नवमें अवेयकमें इकतीस सागरकी आयु है। नव अनुदिशों में बत्तीस सागर और विजय आदि पाँच विमानों में तेंतीस सागरकी उत्कृष्ट आयु है। सर्वार्थसिद्धिमें जघन्य आयु नहीं होती इस बातको बतलाने के लिये सूत्र में सर्वार्थसिद्धि शब्दको पृथक रक्खा है। नव प्रेवेयकोंके नाम-१ सुदर्शन, २ अमोघ, ३ सुप्रबुद्ध, ४ यशोधर, ५ सुभद्र, ६ सुविशाल, ७ सुमनस, ८ सौमनस और ९ प्रीतिङ्कर । स्वर्गों में जघन्य आयुका वर्णन अपरा पल्योपममधिकम् ॥ ३३ ॥ सौधर्म और ऐशान स्वर्गके प्रथम पटलमें कुछ अधिक एक पल्यकी आयु है। परतः परतः पूर्वा पूर्वानन्तरा ॥ ३४ ॥ पहिले पहिलेके पटल और स्वाँकी आयु आगे आगेके पटलों और स्वर्गोको जघन्य आयु है। अर्थात् सौधर्म और ऐशान स्वर्गकी उत्कृष्ट स्थिति सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गमें जघन्य आयु है । इसी क्रमसे विजयादि चार विमानों तक जघन्य आयु जान लेना चाहिये । नारकियोंकी जघन्य आयु नारकाणाश्च द्वितीयादिषु ॥ ३५ ।। पहिले पहिलेके नरकोंकी उत्कृष्ट आयु दूसरे आदि नरकोंमें जघन्य आयु होती है। इस प्रकार दूसरे नरकमें जघन्य आयु एक सागर और सातवें नरककी जघन्य आयु बाईस सागरकी है। दशवर्षेसहस्राणि प्रथमायाम् ॥ ३६ ॥ पहिले नरकमें जघन्य आयु दश हजार वर्षकी है। यह जघन्य आयु प्रथम पटलमें है। प्रथम पटलकी उत्कृष्ट स्थिति नब्बे हजार वर्ष द्वितीय पटलकी जघन्य आयु है । इसी प्रकार आगेके पटलों में जघन्य आयुका क्रम समझ लेना चाहिये। भवनवासियोंकी जघन्य आयु-- भवनेषु च ।। ३७ ।। भवनवासियोंकी जघन्य आयु दश हजार वर्षकी है। व्यन्तरोंकी जघन्य आयु व्यन्तराणाश्च ॥ ३८॥ व्यन्तर देवोंकी भी जघन्य आयु दश हजार वर्षकी है। For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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