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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [ ३।३९ अढ़ाई उद्धारसागरों अथवा पच्चीस कोड़ाकोड़ी उद्धारपल्योंके जितने रोमखण्ड होते हैं उतने ही द्वीप समुद्र हैं। एक वर्षके जितने समय होते हैं उनसे उद्धारपल्यके प्रत्येक रोमखण्डका गुणा करे और ऐसे रोमखण्डोंसे फिर यह गड्डा भर दिया जाय तब इस गड्ढे का नाम अद्धा पल्य है । पुनः एक एक समयके बाद एक एक रोमखण्डको निकालने पर समस्त रोमखण्डोंके निकलने में जितने समय लगें उतने कालका नाम अद्धापल्योपम है। दश कोड़ाकोड़ी अद्धापल्योंका एक अद्धासागर होता है। और दश कोड़ाकोड़ी. अद्धासागरोंकी एक उत्सर्पिणी होती है। अवसर्पिणीका प्रमाण भी यही है। ____ अद्धापल्योपमसे नरक तिर्यञ्च देव और मनुष्योंकी कर्मकी स्थिति, आयुकी स्थिति कायकी स्थिति और भवकी स्थिति गिनी जाती है। तिर्यञ्चोंकी स्थिति तिर्यग्योनिजानाश्च ।। ३९॥ मनुष्योंको तरह तिर्यञ्चोंकी भी उत्कृष्ट और जघन्य आयु क्रमसे तीन पल्य और अन्तर्मुहूर्त है। ___ इस ाय में नरक, द्वीप, समुद्र, कुलपर्वत, पद्मादि ह्रद, गंगादि नदी, मनुष्योंके भेद, मनुष्य ।यश्चोंकी आयु आदिका वर्णन है। तृतीय अध्याय समाप्त whole For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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