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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१३३] तृतीय अध्याय बड़वानलोंकी संख्या एक हजार पाठ है । इन बड़वानलोंके अन्तरालमें भी छोटे छोटे बहुत से बड़वानल हैं । प्रत्येक बड़वानलके तीन भाग हैं । नीचेके भागमें वायु, मध्य भागमें वायु और जल, और ऊपरके भागमें केवल जल रहता है । जब वायु धीरे धीरे नीचे के भागसे ऊपरके भागमें चढ़ती है तो मध्यम भागका जल वायुसे प्रेरित होनेके कारण ऊपरको चढ़ता है । इस प्रकार बड़वानलका जल समुद्र में मिलने के कारण समुद्रका जल तटके ऊपर आ जाता है । पुनः जब वायु धीरे धीरे नीचेको चली जाती है तब समुद्रका जल भी घट जाता है। लवण समुद्रमें ही वेला (तट) है अन्य समुद्रोंमें नहीं । अन्य समुद्रोंमें बड़वानल भी नहीं हैं क्योंकि सब समुद्र एक हजार योजन गहरे हैं। लवण समुद्रका ही जल उन्नत है अन्य समुद्रोंका जल सम ( बराबर ) है। ___लवणसमुद्रके जलका स्वाद नमकके समान, वारुणीसमुद्रके जलका स्वाद मदिरा के समान, क्षीर समुद्रके जलका स्वाद दूधके समान, घृतोद समुद्रके जलका स्वाद घृतके समान, कालोद, पुष्कर और स्वयम्भूरमण समुद्रके जलका स्वाद जलके समान और अन्य समुद्रोंके जलका स्वाद इक्षुरसके समान है। लवण, कालोद और स्वयंभूरमण समुद्रमें ही जलचर जीव होते हैं, अन्य समुद्रों में नहीं । लवण समुद्रमें नदियोंके प्रवेश द्वारोंमें मत्स्योंका शरीर नौ योजन और समुद्रके मध्य में नदियों के प्रवेश द्वारों में मत्स्यों के शरीरका विस्तार अठारह योजन और समुद्रके मध्यमें छत्तीस योजन है। स्वयंभूरमण समुद्रके तटपर रहनेवाली मछलियों के शरीरका विस्तार पाँच सौ योजन और समुद्रके मध्यमें एक हजार योजन है। लवण, कालोद और पुष्करवर समुद्रमें ही नदियों के प्रवेशद्वार हैं, अन्य समुद्रोंमें नहीं हैं । अन्य समुद्रों की वेदियाँ भित्ति के समान हैं। धातकीखण्ड द्वीपका वर्णन द्विर्धातकीखण्डे ।। ३३ ॥ धातकीखण्ड द्वीपमें क्षेत्र, पर्वत आदि की संख्या आदि समस्त बातें जम्बूद्वीप से दूनी दूनी हैं। धातकी खण्ड द्वीपकी दक्षिण दिशामें दक्षिणसे उत्तर तक लम्बा इष्वाकार नामक पर्वत है जो लवण और कालोद समुद्रकी वेदियोंको स्पर्श करता है। और उत्तर दिशामें भी इसी तरहका दूसरा इष्वाकार नामक पर्वत है। प्रत्येक पर्वत चार लाख योजन लम्बे हैं। दोनों इक्ष्वाकार पर्वतोंसे धातकीखण्डके दो भाग हो गये हैं एक पूर्व धातकीखण्ड और दूसरा अपर धातकोखण्ड । प्रत्येक भागके मध्य में एक एक मेरु है । पूर्व दिशामें पूर्वमेरु और पश्चिम दिशामें अपरमेरु है । प्रत्येक मेरु सम्बन्धी भरतआदि सातक्षेत्र और हिमवान् आदि छह पर्वत हैं । इस प्रकार धातकीखण्डमें क्षेत्र और पर्वतोंकी संख्या जम्बूद्वीपसे दूनी है । जम्बू द्वीपमें हिमवान् आदि पर्वतोंका जो विस्तार है उससे दूना विस्तार धातकीखण्डके हिमवान आदि पर्वतोंका है लेकिन ऊँचाई और गहराई जम्बूदीपके समान ही है। इसी तरह विजयाच पर्वत और वृत्तवेदाढ्य पर्वतोंको संख्या भी जम्बूद्वीपके समान है । धातकीखण्डमें हिमवान् आदि पर्वत चक्रके आरे के समान हैं और क्षेत्र आरोंके छिद्रके आकारके हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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