SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३।१२-१७] तृतीय अध्याय ३८७ हिमवान् पर्वत है। हैमवत और हरिक्षेत्रकी सीमापर दो सौ योजन ऊँचा और पचास योजन भूमिगत महाहिमवान् पर्वत है। हरि और विदेह क्षेत्रकी सीमापर चार सौ योजन ऊँचा और सौ योजन भूमिगत निषध पर्वत है। विदेह और रम्यक क्षेत्रकी सीमापर चार सौ योजन ऊँचा और एक सौ योजन भूमिगत नील पर्वत है । रम्यक और हैरण्यवत क्षेत्रकी सीमापर दो सौ योजन ऊँचा और पचास योजन भूमिगत रुक्मि पर्वत है । हैरण्यवत और ऐरावत क्षेत्रकी सीमापर सौ योजन ऊँचा और पच्चीस योजन भूमिगत शिखरी पर्वत है। पर्वतोंके रंगका वर्णनहेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममयाः ॥ १२ ॥ उन पर्वतोंका रंग सोना, चाँदी, सोना, वैडूर्यमणि, चाँदी और सोनेके समान है। हिमवान् पर्वतका वर्ण सोनेके समान अथवा चीनके वस्त्रके समान पीला है । महाहिमवान्का रङ्ग चाँदीके समान सफेद है। निषध पर्वतका रंग तपे हुये सोनेके समान लाल है। नील पर्वतका वर्ण वैडूर्यमणिके समान नील है । रुक्मी पर्वतका वर्ण चाँदीके समान सफेद है। शिखरी पर्वतका रंग सोनेके समान पीला है। पर्वतोंका आकारमणिविचित्रपार्था उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ॥ १३ ॥ उन पर्वतोंके तट नाना प्रकारके मणियोंसे शोभायमान हैं जो देव, विद्याधर और चारण ऋषियोंके चित्तको भी चमत्कृत कर देते हैं । पर्वतोंका विस्तार ऊपर, नीचे और मध्यमें समान है। पर्वतोंपर स्थित सरोवरोंके नामपद्ममहापद्मतिगिञ्छकेशरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका हृदास्तेषामुपरि ॥ १४ ॥ हिमवान् आदि पर्वतोंके ऊपर क्रमसे पद्म, महापद्म, तिगिञ्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये छह सरोवर हैं। प्रथम सरोवरकी लम्बाई चौड़ाईप्रथमो योजनसहस्रायामस्तदविष्कम्भो हदः ॥ १५ ॥ हिमवान् पर्वतके ऊपर स्थित प्रथम सरोवर एक हजार योजन लम्बा और पाँच सौ योजन चौड़ा है । इसका तल भाग वनमय और तट नाना रत्नमय है। प्रथम सरोवरकी गहराई दशयोजनावगाहः ॥ १६ ॥ पद्म सरोवर दश योजन गहरा है। तन्मन्ध्ये योजनं पुष्करम् ॥ १७ ॥ पद्म सरोवरके मध्यमें एक योजन विस्तारवाला कमल है । एक कोस लम्बे उसके पत्ते हैं और दो कोस विस्तारयुक्त कर्णिका है । कर्णिकाके मध्यमें एक कोस प्रमाण विस्तृत श्री देवीका प्रासाद है । वह कमल जलसे दो कोस ऊपर है। पत्र और कर्णिकाके विस्तार सहित कमलका विस्तार एक योजन होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.010564
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1949
Total Pages661
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy