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सम्पादकीय
ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमालामें अकलङ्कीय वाङ्मयके सम्पादन संशोधनके साथ ही दूसरा कार्य चालू है-तत्त्वार्थसूत्रकी अमुद्रित टीकाओंका प्रकाशन। इसी कार्यक्रम में श्रुतसागरसूरि विरचित तत्त्वार्थवृत्ति योगदेवविरचित तत्त्वार्थसुखबोधवृत्ति और प्रमाचन्द्रकृत तत्त्वार्थवृत्तिटिप्पणका संपादन - संशोधन हो चुका है। तत्त्वार्थवार्तिकका तीन ताड़पत्रीय तथा तीन कागजकी प्रतियोंके आधारसे सम्पादन हो रहा है ।
बड़े बड़े ग्रन्थोंका अक्षरानुवाद जितना समय और शक्ति लेता है उतनी उसकी उपयोगिता सिद्ध नहीं होती । कारण, संस्कृताभ्यामी तो मूलग्रन्थ से ही पदार्थबोध कर लेते हैं और भाषाभ्यासी के लिए अक्षरा - नुवादका कोई विशिष्ट उपयोग नहीं है, अतः बड़े ग्रन्थोंका प्रकरणवार हिन्दी सार लिखा जाना व्यवहार्य समझकर तत्त्वार्थवृत्ति ग्रन्थका, जो परिमाण में ९००० श्लोक है संक्षेपमें हिन्दी सार लिखा है। इसमें तत्त्वार्थसूत्र पर श्रुतसागरसूरिका जो विवेचन है वह पूरा संगृहीत है ।
दिगम्बर वाङ्मयके शुद्ध संपादन में ताडपत्रीय प्रतियाँ बहुमूल्य सिद्ध हुई हैं । न्यायकुमुदचन्द्र और न्यायविनिश्चय विवरणके सम्पादनमें ताड़पत्रीय प्रतियाँ ही पाठशुद्धि और संशोधनका मुख्य साधन रही है । इसी तरह तत्त्वार्थवार्तिके अशुद्धिपुञ्ज संस्करणका शुद्ध सम्पादन भी दक्षिणकी ताड़पत्रीय प्रतियोंसे ही हो सका है।
इस तत्त्वार्थवृत्तिके सम्पादन में बनारस, आरा और दिल्लीकी प्राचीन कागजकी प्रतियों का उपयोग तो किया ही गया है पर जो विशिष्ट प्रति हमें मिली और जिसके आधारसे यह संस्करण शुद्ध सम्पादित हुआ, वह है मूवी की ताड़पत्रीय प्रति ।
संज्ञा है । प्रायः अशुद्ध है ।
आरा जैन सिद्धान्त भवन से प्राप्त हुई प्रतिकी आ० बनारस स्याद्वाद विद्यालय से प्राप्त हुई प्रतिकी व
संज्ञा है । यह भी अशुद्ध है ।
दिल्लीकी प्रति श्री पन्नालालजी अग्रवालकी कृपासे प्राप्त हुई है। इसकी संज्ञा द० है । यह अपेक्षाकृत शुद्ध है ।
जैन मन्दिर बनारसकी प्रतिकी संज्ञा ज० है । यह प्राचीन और शुद्ध है।
मूडबिद्री जैन मटकी ताड़पत्रीय प्रतिकी संज्ञा ता० है । यह कनड़ी लिपि में लिखी हुई है और शुद्ध
। इस तरह पाँच प्रतियोंके आधारसे इसका सम्पादन किया गया है।
ग्रन्थान्तरोंसे उद्धृत वाक्योंका मूलस्थल निर्देश [ ] इस ब्रेकिटमें कर दिया है। कुछ अर्थबोधक टिप्पण सम्पादक द्वारा लिखे गए हैं । ताड़पत्रीय प्रतिमें भी कहीं कहीं टिप्पण उपलब्ध हुए हैं उन्हें 'ता० टिο'के साथ छपाया है ।
इस ग्रन्थ में निम्नलिखित परिशिष्ट लगाए गए हैं - १ तत्त्वार्थसूत्रोंका अकाराद्यनुक्रम, २ तत्त्वार्थ सूत्र के शब्दोंकी सूची ३ तत्त्वार्थवृत्तिके उद्धृत वाक्योंकी सूची ४ तत्त्वार्थवृत्तिगत ग्रन्थ और ग्रन्थकार, ५ तत्त्वार्थवृत्तिके विशेष शब्द, ६ ग्रन्थसंकेत विवरण ।
प्रस्तावना तत्त्व, तत्त्वाधिगमके उपाय और सम्यग्दर्शन शीर्षकोंमें जैन तत्त्वोंको मूल जैनदृष्टिसे देखनेका प्रयत्न किया है । आशा है इससे सांस्कृतिक पदार्थोंके निरूपणके लिए नवीनमार्ग मिल सकेगा । 'तत्त्वाचिगम के उपाय' प्रकरण में स्याद्वाद और सप्तभंगी के संबंधमं श्री राहुलजी, सर राधाकृष्णन्, बलदेवजी उपाध्याय आदि वर्तमान दर्शनलेखकों की भ्रान्त धारणाओंकी आलोचना भी की गई है।
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