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________________ १. १६.] अवग्रह आदि के विषयभूत पदार्थों के भेद २७ समाधान--संज्ञी पंचेन्द्रियों में मतिज्ञान के ये भेद देखकर अन्यत्र उनका उपचार किया जाता है। शंका-चींटी आदि को अनिष्ट विषय से निवृत्त होते हुए और इष्ट विषय में प्रवृत्ति करते हुए देखा जाता है, इससे ज्ञात होता है कि एकेन्द्रिय आदि जीवों के भी उक्त प्रकार से ज्ञान होता है ? समाधान-यद्यपि एकेन्द्रिय आदि जीवों के मन नहीं हैं तो भी जिनके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं उनमें ऐसी योग्यता होता है जिससे वे अनिष्ट विषय से निवृत्त होकर स्वभावतः इष्ट विषय में प्रवृत्ति करते रहते हैं ॥ १५ ॥ अवग्रह आदि के विषयभूत पदार्थों के भेद --- * बहुबहुविधक्षिप्रानिःसृतानुक्तध्रुवाणां सेतराणाम् ॥ १६ ॥ बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिःसृत, अनुक्त और ध्रुव तथा इनके प्रतिपक्षभूत पदार्थो के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप मतिज्ञान होते हैं। ___ अबतक मतिज्ञान के अवग्रह आदि चार भेद और उनके निमित्त बतलाये पर यह नहीं बतलाया कि इन सबकी प्रवृत्ति किनमें होती है। प्रस्तुत सूत्र में यही बतलाया गया है। यहाँ मतिज्ञान के विषयभूत पदार्थो के बारह भेद किये गये हैं सो ये सब भेद पदार्थ, क्षयोपशम और निमित्त की विविधता के कारण से किये गये जानना चाहिये। पाँच इन्द्रिय और मन के निमित्त से होनेवाला अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप मतिज्ञान इन बारह प्रकार के विषयों में प्रवृत्त होता है यह इस सूत्र का भाव है। इस प्रकार मतिज्ञान के कुल भेद २८८ * श्वेताम्बर भाष्यमान्य पाठ यों है---'बहुबहुविधक्षिप्रानिश्रितासन्दिग्धध्रुवाणां सेतराणाम्' देखो पं० सुखलालजी का तत्त्वार्थसूत्र पृ० २५ ।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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