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________________ १. ५.] निक्षेपों का नाम निर्देश आवश्यक है उनका यहाँ तत्त्वरूप से उल्लेख किया है। मुख्य साध्य माक्ष है इस लिये सात तत्त्वों में मोक्ष का नामोल्लेख किया है। किन्तु इसके प्रधान कारणों को जाने बिना मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति हो नहीं सकती, इस लिये सात तत्वों में मोक्ष के प्रधान कारण रूप से सवर और निर्जरा का नामोल्लेख किया है। मोक्ष संसार पूर्वक होता है और संसार के प्रधान कारण आस्रव और बन्ध है, इस लिये सात तत्त्वों में इनका नामोल्लेख किया है। किन्तु यह सब व्यवस्था जीव और अजीव के संयोग और वियोग पर अवलम्बित है. इस लिये इन दोनों का सात तत्त्वों में नामोल्लेख किया है। इस प्रकार आत्महित को चाहनेवाले जिज्ञासु को इन सबको जान लेना आवश्यक है इस लिये तत्त्व सात कहे है। मोक्ष का अधिकारी जीव है इस लिये तो जीव तत्त्व कहा गयाहै। किन्तु जीव की अशुद्ध अवस्था के होने में पुद्गल निमित्त है, इस लिये अजीव तत्त्व कहा गया है। जीव और अजीव का संयोग आस्रवपूर्वक होता है इस लिये आस्रव और बन्ध तत्त्व कहे गये हैं। अब यदि अपनी अशुद्ध अवस्था और पुदल की निमित्तता से छुटकारा पाना है तो वह संवर और निर्जरापूर्वक ही प्राप्त हो सकता है इस लिये संबर और निर्जरा तत्त्व कहे गये हैं। तात्पर्य यह है कि यहाँ संसार के सब पदार्थों को बतलाने की दृष्टि से सात तत्त्वों का विवेवन न करके आध्यात्मिक दृष्टि से विवेचन किया गया है ॥४॥ निक्षेपों का नाम निर्देश नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः ॥ ५ ॥ नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूप से उनका अर्थात् सम्पग्दर्शन आदि और जीव आदि का न्यास अर्थात् निक्षेप होता है। लोक में या आगम में जितना शब्द व्यवहार होता है वह कहाँ
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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