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________________ १. २८-३४] आध्यान का निरूपण ४३९ ध्यान के भेद और उनका फलश्रातरौद्रधर्म्यशुक्लानि ॥ २८॥ परे मोक्षहेतू ॥ २९॥ आत, रोद्र, धर्म्य और शुक्ल ये ध्यान के चार भेद हैं । उनमें से पर अर्थात् अन्त के दो ध्यान मोक्ष के हेतु हैं। १ ऋत का अर्थ दुःख है। जिसके होने में दुःख का उद्वेग या तीव्रता निमित्त है वह आर्तध्यान है। २ रुद्र का मतलब कर परिणामों से है। जो कर परिणामों के निमित्त से होता है वह रौद्र ध्यान है । ३ जो शुभ राग और सदाचरण का पोषक है वह धर्म्यध्यान है और ४ मन की अत्यन्त निर्मलता के होने पर जो एकाग्रता होती है वह शुक्ल ध्यान है। इस प्रकार ये चार ध्यान हैं। इनमें से अन्त के दो ध्यान मोक्ष अर्थात् जीवन की विशुद्धि के प्रयोजक है इसलिये वे सुध्यान कहलाते हैं और प्रारम्भ के दो ध्यान संसार के कारण होने से दुनि कहे जाते हैं ॥२८-२६॥ अार्तध्यान का निरूपणआर्तममनोज्ञस्य सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः ॥ ३०॥ विपरीतं मनोज्ञस्य ॥ ३१॥ वेदनायाश्च ॥ ३२ ॥ निदानं च ॥ ३३॥ तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् ॥ ३४ ॥ अप्रिय वस्तु के प्राप्त होने पर उसके वियोग के लिये चिन्तासातत्य का होना प्रथम आतध्यान है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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