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विषय चारित्रमोहनीय , " नरकायु , " तिथंचायु कर्मके आत्रव मनुष्यायु ,, ,, चारों आयुओं के आश्रव देवायु कर्म के वैमानिक देवों की आयु के आस्रष अशुभ नाम कर्म के शुभ , तीथकर , नीचगोत्र कर्म के उच्चगोत्र ,, अन्तराय कर्म के
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सातवाँ अध्याय व्रत का स्वरूप व्रत के भेद व्रतों की भावनाएं कुछ अन्य सामान्य भावनाएं जिनसे उक्त व्रतों की पुष्टि हो हिंसा का स्वरूप
हिंसा का लाक्षणिक अर्थ हिंसा का मथितार्थ जीवन की सबसे बड़ी भूल ही हिंसा का कारण है हिंसा के भेद व उसके कारण
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