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________________ ७. १६.] व्रती के भेद ३३६ वसतिका आदि में भी निवास करते हुए देखे जाते हैं, इसलिये जो घर में निवास करे वह अगारी और जो घर का त्याग करके रहे वह अननार यह अर्थ तो नहीं बनता ? समाधान-वास्तव में यहाँ अगार शब्द से केवल मिट्टी का घर नहीं लिया गया है किन्तु इसका अर्थ आत्मा का वह परिणाम है जो घर आदि सकल परिग्रह के त्याग में प्रवृत्त नहीं होने देता है। ऐसे परिणाम के रहते हुए यदि कोई व्यक्ति वन में भी निवास करने लगता है तो वह अगारी ही है और इस परिणाम के छूट जाने पर प्रसंगवश यदि कोई वसतिका में भी निवास करता है तो वह अनगार ही है। वास्तव में देखा जाय तो क्या मिट्टी का घरोंदा और क्या वन ये दोनों ही ममत्व परिणामवाले के लिये घर ही हैं और जिसकी ममता नष्ट हो गई है उसके लिये क्या घर और क्या वन ये दोनों ही त्याज्य हैं। पर इसका यह अर्थ नहीं कि घरका बिना त्याग किये भी कोई अनगार हो सकता है। त्याग और ग्रहण में संकल्प की मुख्यता है इसलिये संकल्पपूर्वक त्याग तो करना ही होगा। यही कारण है कि आगम में मुनि के लिये तिल तुषमात्र परिग्रह के रखने का निषेध किया गया है। यह कभी सम्भव नहीं कि परिग्रह का त्याग तो न किया जावे परन्तु उसकी मूर्छा नष्ट हो जाय। हाँ यह अवश्य सम्भव है कि परिग्रह का त्याग भी कर दिया जाय तो भी उसकी मूर्छा बनी रहे, इसलिये जो अनगार होना चाहता है उसके लिये सर्वप्रथम घर आदि सकल परिग्रह का त्याग करना आवश्यक बतलाया है। शंका-अगारी को व्रती कहना उचित नहीं, क्यों कि उसके परिपूर्ण व्रत नहीं पाये जाते ? समाधान-अगारी स्थूल दृष्टि से व्रती कहा जाता है। जैसे कोई व्यक्ति शहर के किसी एक हिस्से में ही रहता है फिर भी उसके सम्बन्ध में 'वह अमुक शहर में रहता है। ऐसा व्यवहार विशेष किया जाता
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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