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________________ ३२६ [७. १५. तत्त्वार्थसूत्र कुछ द्रव्य चुरा लेता है तो क्या उसका वैसा करना चोरी में सम्मिलित समझा जायगा? समाधान-अवश्य । शंका-तो गरीब जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे की जाय ? समाधान-इसके लिये संगठित प्रयत्न करना चाहिये और मिलकर उस अवस्था को बदल देना चाहिये जिससे साधनों के अभाव में सर्व साधारण जनता का उत्पीड़न होता हो।। __ शंका-प्रत्येक संसारी प्राणी श्वास लेता है और कर्म नोकर्म को भी ग्रहण करता है सो उसका वैसा करना क्या चोरी में सम्मिलित समझा जाना चाहिये, क्योंकि ये सब बस्तुएं बिना दी हुई रहती हैं ? समाधान-यद्यपि यह सही है कि बिना दी हुई वस्तु का लेना चोरी है तथापि इन उपयुक्त वस्तुओं में दानादानका व्यवहार सम्भव नहीं, इसलिये इनका प्राप्त होना चोरी में सम्मिलित नहीं है। 'शंका-साधुओं का गली कूचा आदि के द्वार में से प्रवेश करना व इतर जनों का नदी, तालाब आदि का पानी लेना, दातौन तोड़ना आदि भी तो अदत्तादान है, इसलिये इनके ग्रहण करने में चोरी का दोष लगना चाहिये ? समाधान-जो वस्तुएं सामान्य रूप से सबके उपयोग के लिये . होती हैं और जिस पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होता, अपनी अपनी आवश्यकता के अनुसार उनके ग्रहण करने में चोरी का दोष नहीं लगता। उपयुक्त वस्तुएं ऐसी हैं जिन पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं रहता , अतः उनका ग्रहण करना अदत्तादान नहीं है और इसलिये उनके ग्रहण करने में चोरी का दोष नहीं है। यह चोरी का व्यवहारपरक अर्थ है। वास्तविक अर्थ यह है कि जीवन की किसी भी प्रकार की कमजोरी को छिपाना चोरी है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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