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२८० तत्त्वार्थसूत्र
[६. ७-६. उदाहरण भी जान लेना चाहिये। जैसे-एक मनुष्य को प्रथम दिन उग्र अस्त्र दिया गया और दूसरे दिन मामूली, जिससे पहले दिन उसका हिंसा करने का भाव द्विगुणित हो गया और दूसरे दिन वह मन्द पड़ गया। इस प्रकार अजीवाधिकरण के भेद से अाखव में भेद हो कर कर्मबन्ध न्यूनाधिक होता है। प्रथम दिन तीव्र अस्त्र होने के कारण परिणामों में तीव्रता आगई थी जिससे अधिक कर्मबन्ध हुआ और दूसरे दिन मामूली अस्त्र होने के कारण हिंसा करने में उत्साह न रहा, इसलिये मन्द कर्मबन्ध हुआ।
शक्ति विशेष वीर्य कहलाता है। इससे भी प्रास्नब में भेद होकर कर्मबन्ध में फरक पड़ जाता है। उदाहरणार्थ -- ऐसे दो व्यक्ति हैं जो जनता की सेवा करना चाहते हैं। किन्तु एक होनबल है और दूसरा अधिकबल । जो हीनबल है वह इसलिये अप्रसन्न रहता है कि उससे सेवा नहीं बन पाती और दूसरा इसके विपरीत प्रसन्न रहता है। यतः इससे भी आस्रव में भेद होता है इसलिये यह भी न्यूनाधिक कर्मबन्ध का कारण है। __ इस प्रकार इन तीव्रभाव आदि के कारण आस्रव अनेक प्रकार का हो जाता है इसलिये इसके कार्यरूप से कर्मबन्ध में भी फरक पड़ जाता है यह प्रस्तुत सूत्र का भाव है ॥६॥
अधिकरण के भेद-प्रभेदअधिकरणं जीवाजीवाः ॥ ७ ॥
आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेपैस्विस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः॥ ८ ॥
निवर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम् ॥९॥ अधिकरण जीव और अजीवरूप है।