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________________ २५० तत्त्वार्थसूत्र [५. ३०. किसी युवती को देखने से उसका ज्ञान होता है और यह ज्ञान उसके प्रति राग को पैदा करने में निमित्त होता है। पर इससे उक्त कथन में कोई बाधा नहीं आती, क्योंकि यहाँ पर भिन्न द्रव्य उससे भिन्न कार्य के होने में कैसे निमित्त होता है इसका विचार किया जा रहा है। इससे निश्चित होता है कि सक्रिय पदार्थ निष्क्रिय पदार्थों की तरह उदासीनरूप से ही निमित्त कारण होते हैं, प्रेरकरूप से नहीं। शङ्का-इन बातों से तो इतना ही पता लगता है कि सक्रिय पदार्थो की निमित्तता अनियत है । इससे यह तो नहीं जाना जाता कि वे प्रेरकरूप से निमित्त नहीं हैं ? . समाधान-जब कि सक्रिय पदार्थों में निमित्त होने की योग्यता 'एक काल में दो कार्यो की अपेक्षा भिन्न भिन्न प्रकार की होती है तब फिर उन्हें प्रेरकरूप से निमित्त कैसे माना जा सकता है अर्थात् नहीं माना जा सकता। यही कारण है कि उक्त हेतुओं के आधार से यह निर्णय होता है कि सक्रिय पदार्थ भी अप्रेरक निमित्त हैं। ___ शङ्का-कभी कभी इच्छा न रहते हुए भी अनिच्छित स्थान के प्रति गति देखी जाती है। जैसे किसी शीघ्र गतिशील सवारी से यात्रा करने पर जहाँ उतरना चाहते हैं वहाँ उतरने का प्रयत्न करने पर भी आगे चले जाते हैं, इसलिये इस उदाहरण से तो यही स्थिर होता है कि सक्रिय पदार्थ प्रेरकरूप से भी निमित्त होते हैं ? समाधान-इस उदाहरण से सक्रिय पदार्थ प्रेरकरूप से निमित्त होते हैं यह न सिद्ध होकर केवल इतना ही सिद्ध होता हैं कि गति क्रिया भिन्न प्रकार से हुई और इच्छा भिन्न प्रकार से हुई। इच्छा और गति में एकरूपता न आने पाई। शीघ्र गतिशील सवारी जिस स्थान पर जाकर रुकी वहाँ तक गति नहीं होनी थी इसका नियामक क्या ? यदि इसके नियामक का पता लग जाय तो अवश्य यह माना जा सकता है कि सक्रिय पदार्थ प्रेरकरूप से भी निमित्त है। किन्तु जब तक इस
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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