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________________ ४. ७.–९. ] देवों में कामख वर्णन १७१ 1 | यथा - ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर कल्प का इन्द्र ब्रह्म नामवाला है लान्तव और का पष्ट कल्प का इन्द्र लान्तव नामवाला है। शुक्र और महाशुक्र का इन्द्र शुक्र नामवाला है और शतार और शहस्त्रार कल्पा का इन्द्र शतार नामवाला है ॥ ६ ॥ देवो में कामसुख वर्णन - कायप्रवीचारा आ ऐशांनात् ॥ ७ ॥ शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचाराः ॥ ८ ॥ परेऽप्रवीवाराः ॥ ९ ॥ ऐशानतक के देव काय से विषयसुख भोगनेवाले होते हैं । सनतकुमार आदि कल्पवासी शेष देव स्पर्श, रूप, शब्द और मन से विषय सुख भोगने वाले होते हैं । । ऐशान कल्प तक के सौधर्म तथा ऐशान अन्य सब देव विषय सुख से रहित होते हैं । satचारका अर्थ विषय सुख का भोगना है देव अर्थात् भवनवासी, व्यन्तः, ज्योतिष्क और कल्प के देव मनुष्यों के समान शरीर से विषय सुख का अनुभव करते हैं। तीसरे कल्प से लेकर सोलहवें कल्प तक के देव शरीर से विषय - सुख का अनुभव न करके दूसरे प्रकार से विषय सुख का अनुभव करते हैं । यथा -- मनतकुमार और माहेन्द्र कल्प के देव देवाङ्गनाओं के स्पर्श मात्र से अत्यन्त तृप्ति को प्राप्त होते हैं और वहाँ की देवियाँ मी इसी प्रकार स्पर्शमात्र से तृप्ति को प्राप्त होती हैं । ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ठ स्वर्ग के देव और देवाङ्गनाएँ एक दूसरे के सुन्दर रूप के देखने मात्र से परमसुख का अनुभव करते हैं। शुक्र, महाशुक्र, शतार * श्वेताम्बर परम्परा में इस सूत्र के अन्त में 'द्वयोर्द्वयोः' इतना पाठ अधिक है ।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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