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________________ १५४ तत्त्वार्थसूत्र [३. ९ -२३. आगे के पाँचों तालाबों में भी कमल हैं। आगे के इन तालाबों और कमलों की लम्बाई आदि दूनी-दूनी है। पर यह द्विगुणता तीसरे तालाब तक जानना चाहिए। आगे के तालाब और कमल दक्षिण दिशा के तालाब और कमलों के समान हैं ॥ १७-१८ ।। अब प्रश्न यह है कि वे कमल केवल शोभा के लिये हैं या उनका कुछ उपयोग भी है ? प्रस्तुत सूत्र में इसी प्रश्न का उत्तर दिया गया है। उसमें बतलाया है कि उन कमलों में क्रम से श्री, कमलों में निवास वा ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये छह देवियाँ " रहती हैं। जिनकी आयु एक पल्योपम है। जैसा कि ऊपर बतला आये हैं इन कमलों के परिवार कमल भी हैं जिनमें सामानिक और परिषद देव रहते हैं ॥ १९॥ ___उक्त सात क्षेत्रों में चौदह नदियाँ वहीं हैं। जिनमें से भारतवर्ष में गङ्गा और सिन्धु, हैमवत वर्ष में रोहित और रोहितास्यो, हरिवर्ष में हरित् और हरिकान्ता, विदेहवर्ष में सीता और गङ्गा आदि नदियों । सीतोदा, रम्यकवर्ष में नारी और भरकान्ता, हैरण्य. वतवर्ष में सुवर्णकूला और रूप्यकूला तथा ऐरावतवर्ष में रक्ता और रक्तोदा ये चौदह नदियाँ वही हैं। इनमें से प्रथम, द्वितीय और चौथी नदियाँ पद्महद से निकली हैं। तीसरी और छठी नदियाँ महापद्महद से निकली हैं। पाँचवीं और आठवी नदियाँ तिगिन्छहद से निकली हैं। सातवीं और दसवीं नदियाँ केसरीह्रद से निकली हैं, नौवीं और बारहवीं नदियाँ महापुण्डरीक हद से निकली है तथा ग्यारहवीं, तेरहवीं और चौदहवीं नदियाँ पुण्डरीक ह्रद से निकली हैं । प्रत्येक क्षेत्र की इन दो दो नदियों में से पहली-पहली नदी पूर्व समुद्र में जा मिली हैं और दूसरी-दूसरी नदियाँ बहकर पश्चिम समुद्र में मिली हैं। इनमें से गङ्गा और सिन्धू की चौदह-चौदह हजार परिवार नदियाँ हैं। आगे सीता-सीतोदा तक दूनी-दूनी परिवार नदियाँ
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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