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१४८ तत्त्वार्थसूत्र
[३. ७.८ (४) संज्ञी पंचेन्द्रिय सम्मूर्छन तिथंच मारणान्तिक पद की अपेक्षा सातों भूमियों में पाये जाते हैं, क्योंकि ये मरकर सातों नरकों में उत्पन्न हो सकते हैं।
(५) असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच मारणान्तिक पद की अपेक्षा पहली पृथिवी तक पाये जाते हैं, क्योंकि ये मरकर पहले नरक में ही उत्पन्न हो सकते हैं।
___ मध्यलोक का वर्णन जम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ॥ ७ ॥ द्विर्द्वि विष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥ ८॥
जम्बूद्वीप आदि शुभ नामवाले द्वीप और लवणोद आदि शुभ नामवाले समुद्र हैं।
वे सभी द्वीप और समुद्र दूने-दूने विस्तारवाले, पूर्व पूर्व को वेष्ठित करनेवाले और वलय-चूड़ी जैसी आकृतिवाले हैं। ____मध्य में यह लोक उत्तर-दक्षिण सात राजू और पूर्व-पश्चिम एक राजू है । तथापि इसका आकार झालर के समान बतलाया है जो द्वीप
और समुद्रों के आकार की प्रधानता से कहा गया द्वीप और समुद्र है। ये सबके सब द्वीप और समुद्र मध्यलोक में ही
हैं जो असंख्यात संख्यावाले हैं। वे सबके सब द्वीप और उसके बाद समुद्र, फिर द्वीप और उसके बाद समुद्र इस क्रम से स्थित हैं। प्रथम द्वीप का नाम जम्बूद्वीप और समुद्र का नाम लवण समुद्र हैं ।। ७॥
यहाँ द्वीपों और समुद्रों के विषय में व्यास, रचना और आकार इन तीन बातों का जानना मुख्य है जिनका निर्देश इस सूत्र में किया है।
इस सूत्र से अन्य द्वीप समुद्रों का व्यास, रचना व आकार तो