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________________ तत्त्वार्थसूत्र [२. १७.-२१. निवृत्त्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ॥ १७ ॥ लब्ध्युपयोगौ भावन्द्रियम् ॥ १८ ॥ स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि ॥ १९ ॥ स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः * ॥ २० ॥ श्रुतमनिन्द्रियस्य ॥ २१ ॥ इन्द्रिया पांच हैं। वे प्रत्येक दो दो प्रकार की हैं। निवृत्ति और उपकरण ये द्रव्येन्द्रिय हैं । लब्धि और उपयोग ये भावेन्द्रिय हैं। स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोन ये इन्द्रियों के नाम हैं। स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द थे क्रम से उनके विषय हैं। श्रुत अनिन्द्रिय अर्थात् मन का विषय है। पहले १४ वे सूत्र में 'द्वीन्द्रियादयः' यह पद लिख आये हैं इससे इन्द्रियों की संख्या बतलाना आवश्यक समझकर उनकी संख्या का निर्देश किया है कि इन्द्रियाँ पाँच है। शंका-इन्द्रिय किसे कहते हैं ? समाधान-जिससे ज्ञान और दर्शन का लाभ हो सके या जिससे आत्मा के अस्तित्व की सूचना मिले उसे इन्द्रिय कहते हैं। शंका-इन्द्रियाँ पाँच ही हैं यह बात नहीं है, क्योंकि पाँच कर्मेन्द्रियों के सम्मिलित कर देने पर इन्द्रियों की संख्या दस हो जाती है ? समाधान -माना कि सांख्य आदि मतों में वाक, पाणि, पाद, (+) श्वेताम्बर परम्परा में इस सूत्र के पूर्व 'उपयोगः स्पर्शादिषु' सूत्र अधिक है। (*) 'तदर्थाः' के स्थान में श्वेताम्बर पाठ 'तेषामर्थाः' है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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