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तत्वार्थसून [२.११.-१४. कारण है। आशय यह कि त्रस नामकर्म के उदय से जीव त्रस कहलाते हैं और स्थावर नामकर्म के उदय से स्थावर कहलाते हैं ।
शंका--जो हल डुल सकें वे त्रस हैं और जो इस प्रकार की क्रिया से रहित हैं वे स्थावर हैं, यदि त्रस और स्यावर का यह प्रार्थ किया जाय तो क्या आपत्ति है ?
समाधान-~यदि बस और स्थावर का उक्त अर्थ किया जावे तो जोनल गर्म में है मूच्छित हैं, सुपुत हैं, वेहोश हैं और अण्ड अवस्था में हैं जो कि हल डुल नहीं सकते उन्हें अत्रसत्व का प्रसंग प्राप्त होगा
और जो वायु यादि गमनशील हैं उन्हें अस्थावरत्व का प्रसंग प्राप्त होगा। किन्तु ऐसा मानने पर आगम से विरोध आता है अतः जिनके त्रस नामकर्म का उदय है वे त्रस हैं और जिनके स्थावर नामकर्म का उदय है वे स्थावर हैं, बस और स्थावर का यही अर्थ मानना संगत है।
शंका-दसमें सूत्र में सब जीवों के संसारी और मुक्त थे दो भेद किये हैं और ग्यारहवें सूत्र में सननस्क अमनस्क ये दो भेद गिनाये हैं, अतः सब संसारी जीव समनस्क और मुक्त जीव अमनस्क होते हैं ग्तारहवें सूत्र का यह अर्थ करने में क्या आपत्ति है ?
समाधान-ग्यारहवें सूत्र का उक्त अर्थ युक्त नहीं क्यों कि समनस्क और अमनस्क ये भेद संसारी जीवों के ही हैं । मुक्त जीव तो इन दोनों विकल्पों से रहित हैं। __ शंका-ग्यारहवें सूत्रमें संसारी जीवों के भेद गिनाये हैं यह कैसे जाना ?
समाधानबारहवें सूत्र में जो 'संसारिणा' पद पड़ा है वह मध्य दीपक है जिससे यह ज्ञात होता है कि समनस्क और अमनस्क ये संसारी जीवों के भेद हैं तथा त्रस और स्थावर ये भी संसारी जीवों के भेद हैं।
शंका-यदि ऐसा है तो ग्यारहवें और बारहवें सूत्र में क्रम से