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________________ २.१,-७.] पांच भाव, उसके भेद और उदाहरण ८१ बन्धी आदि का क्षयोपशम बन जाता है। अघातिया कर्मों में तो देशवाति और सर्वघाति यह विकल्प ही सम्भव नहीं इस लिए उनके क्षयोपशम का प्रश्न ही नहीं उठता। यह तो क्षयोपशम का सामान्य योग्यता का विवेचन किया। अब यह बतलाते हैं कि किन किन कर्मो के क्षयोपशम से कौन कौन से भाव प्रकट होते हैं। मतिज्ञानावरण, श्रतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण और मनः पर्यय ज्ञानावरण के क्षयोपशम से मति, श्रुत, अवधि और गनःपर्पय ये चार क्षायोपशमिक ज्ञान प्रकट होते हैं। भति अज्ञानावरण, श्रुत अज्ञानावरण और विभंग ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से मत्यज्ञाल, श्रताज्ञान और विभंगज्ञान प्रकट होते हैं। चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण के क्षयोपशम से चक्षुर्दर्शन, अचक्षुर्दर्शन और अवधिदर्शन प्रकट होते हैं। पाँच प्रकार के अन्तराय के क्षयोपशम से पाँच लब्धियाँ प्रकट होती हैं। सम्यक्त्व प्रकृति के उदय से क्षायोपशभिक सम्यग्दर्शन प्रकट होता है। अनन्तानुबन्धी श्रादि बारह प्रकार की कषाय के उदयाभावीक्षय और सवस्थारूप उपशम से तथा चार संज्वलन में से किसी एक के और नौ नोकपाय के यथा सम्भव उदय होने पर क्षायोपशमिक सर्वविरतिरूप चारित्र प्रकट होता है। तथा अनन्तानुबन्धी आदि आठ प्रकार की कपाय के उदयाभावी क्षय और सदवस्थारूप उपशम से तथा प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन कषाय के और नौ नोकषाय के यथा सम्भव उदय होने पर क्षायोपशमिक संयमासंयम भाव प्रकट होता है । इस प्रकार ये अठारह प्रकार के ही क्षायोपशमिक भाव हैं। शंका-संज्ञित्व, सम्पग्मिथ्यात्व और योग भी क्षायोपशमिक भाव हैं उनका यहाँ प्रहण क्यों नहीं किया ! समाधान-संज्ञीपना ज्ञान की अवस्था विशेष है, इस लिये उसे अलग से ग्रहण नहीं किया। सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक्स्व का एक
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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