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नय के भेद
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जाता है यह एक प्रश्न है जिसका उत्तर एवम्भूत नय देता है । इसके अनुसार प्रत्येक शब्द का व्युत्पत्त्यर्थं घटित होने पर एवम्भूत नय ही उस शब्द का वह अर्थ लिया जाता है । समभिरूढ़ नय जहाँ शब्द भेद के अनुसार अर्थ भेद करता है वहाँ एवम्भूत व्युत्पत्त्यर्थ के घटित होने पर ही शब्द भेद के अनुसार अर्थ भेद करता है । यह मानता है कि जिस शब्द का जिस क्रियारूप अर्थ तद्रपक्रिया से परिणत समय में ही उस शब्द का वह अर्थ हो सकता अन्य समय में नहीं ।
उदाहरणार्थ- पूजा करते समय ही किसी को पुजारी कहना उचित है अन्य समय में नहीं । वही व्यक्ति जब रसोई बनाने लगता है या सेवा करने लगता है तब इस य के अनुसार उसे पुजारी नहीं कहा जा सकता। उस समय वह रसोइया या सेवक ही कहा जायगा । इस प्रकार उक्त प्रकार के जितने भी विचार हैं वे सब एवम्भूत नय की श्रेणी में आते हैं ।
नयोंके विषय की
ये सात नय हैं जो उत्तरोत्तर अल्प विषयवाले हैं । अर्थात् नैगम के विषय से संग्रह नय का विषय अल्प है और संग्रह नय के विषय से व्यवहार नयका विषय अल्प है आदि । पूर्व पूर्व नयों के इससे यह भी सिद्ध हो जाता है कि संग्रह नय विषय की महानता की अपेक्षा नैगम का, व्यवहार की अपेक्षा संग्रह और उत्तर उत्तर का और ऋजुमूत्र आदि की अपेक्षा व्यवहार आदि समर्थन का विषय महान् है । अर्थात् नैगम नय का समग्र विषय संग्रह नय का अविषय है । संग्रह नय का समग्र विपय व्यवहार नय का अविषय है आदि । इन सातों नयों में से नैगम नय द्रव्य और पर्याय को गौण मुख्य भाव से विषय करता है इसलिए संग्रह नय के विषय से नैगमनय का विषय महान् है और नैगम नय के विषय से संग्रह नय का विषय अल्प है । संग्रहनय सामान्य को और तिर्यक् सामान्य को विषय करता है इसलिये