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[ ११ ] क्योंकि उन्होंने 'गृद्धपिच्छाचार्यपर्यन्तमुनिसूत्रेण' इस पद द्वारा स्पष्टतः गृद्धपिच्छाचाय को तत्त्वार्थसूत्र का कर्ता घोषित किया है।
३ तीसरा उल्लेख चन्द्रगिरि पर्वत पर पाये जानेवाले शिलालेखों का है। इनमें से ४०, १२, ४३, ४७, ५० वें शिलालेखों में गृद्धपिच्छ विशेषण के साथ उमास्वातिका उल्लेख किया है और शिलालेख १०५ व १०८ में उन्हें तत्त्वार्थसूत्र का कर्ता भी बतलाया है। ये दोनों शिलालेख डा० हीरालाल जी के मतानुसार क्रमशः शक सं० १३२० और शक सं० १३५५ के माने जाते हैं। शिलालेख १०५ का उद्धरण इस प्रकार हैश्रीमानुमास्वातिरयं यतीशस्तत्त्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार । यन्मुक्तिमार्गाचरणोधतानां पाथेयमयं भवति प्रजानाम् ॥१५॥ तस्यैव शिष्योऽजनि गृद्धपिच्छद्वितीयसंज्ञस्य बलाकपिच्छः । यत्सूक्तिरत्नानि भवन्ति लोके मुक्त्यंगनामोहनमण्डनानि ॥१६॥ शिलालेख १०८ में इसी बात को इस प्रकार लिपिबद्ध किया गया हैअभूदुमास्वातिमुनिः पवित्र वंशे तदीये सकलार्थवेदी। सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मुनिपुंगवेन ॥११॥ स प्राणिसंरक्षणसावधानो बभार योगी किल गृद्धपक्षान् । तदा प्रभृत्येव बुधा यमाहुराचार्यशब्दोत्तरगृद्धपिच्छम् ॥ १२ ।।
४ चौथा उल्लेख निम्नलिखित श्लोक के आधार पर हैतत्त्वार्थसूत्रकर्तारं गृद्धपिच्छोपलक्षितम् । वन्दे गणीन्द्रसंजातमुमास्वामिमुनीधरम् ।। ___ इसमें गृद्धपिच्छ से उपलक्षित उमास्वामी मुनीश्वर को तत्वार्थसूत्र का कर्ता बतलायो है और इन्हें गणीन्द्र कहा है।