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________________ oooooooooooooooooooooooooooooo वाच्यम् ॥ हठे, बाहुबलिवत् धरनो मएण हुँतो तो नवसीउलवाय विभडिओ । संवच्छर मणसीओ बाहुबली तह किलिस्सन्तो ॥५॥ | अभिमाने, दशार्णभद्रनृपवत्-- दशार्णभद्रादपरो न मानी श्रीशान्तिनाथादपरो न दानी। श्रीशालिभद्रादपरो न भोगी श्रीस्थूलभद्रादपरो न योगी॥६॥ चउसट्ठि करिसहस्सा चउसहि स अट्ठदन्त अट्ठसिरा । दंते अ एगमेगे पुक्खरणीओ अ अट्ठट्ठ ॥७॥ इत्यादिपुरन्दरऋद्धिं दृष्ट्वा श्रीदशार्णभद्रराजेन्द्रः श्रीवीरपार्श्वे प्रव्रजितः; सुरेन्द्रः पादे पतितो जितं लया मया हारितमित्युक्त्वा । यतः-- एगदिवसं पि जीवो पवज्जमुआगओ अनन्नमणो । जइ वि न पावइ मुक्खं अवस्स वेमाणिओ होइ ॥८॥ देवदाणवगंधव्वा जक्खरक्खसकिन्नरा । बंभयारिं नमंसन्ति दुक्करं जं करंति ते ॥ ९॥ तथाऽहङ्कारे सत्यप्रतिज्ञे श्रीगौतमखामिप्रमुख४४शतद्विजदीक्षासंबन्धा वाच्याः । श्रीसिद्धसेनदिवाकररय वृद्धवादिकृतः नवि मारीइ नवि चोरीइ परदारा गमण निवारीइ । थोवा थोवु दाईइ इम टगमगि सरगिं जाईइ ॥१०॥ 500000000000000000000000000000000000000000000000001
SR No.010552
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani
PublisherHarshchandra Bhurabhai Shah
Publication Year
Total Pages313
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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