________________
३२]
श्री सिद्धचक्र विधान
जो पाय न पर उपदेशा, जानें तप ज्ञान विशेषा। प्रत्येक बुद्ध गुण धारी, भये सिद्ध नमूं हितकारी॥
ॐ ह्रीं प्रत्येकबुद्धऋद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥११॥ गणधर से समकित धारी, तुम दिव्यध्वनि अनुसारी। ज्ञानिनी सिरताज कहाये, भये सिद्ध सुजस हम गाये॥
ॐ ह्रीं अर्ह बोधबुद्धेणं नमः अर्घ्यं ॥१२॥ मन योग सरलता धारै, तिस अन्तर भेद उधारें। यों होय ऋजुमति ज्ञानी, नमूं सिद्ध भये सुखदानी॥
ॐ ह्रीं ऋजुमतिऋद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१३॥ . बांके मन के सब वाता, जानों सो विपुल कहाता। तुम पाय भये शिवधामी, नमूं सिद्धराज अभिरामी॥
ॐ ह्रीं विपुलमतिऋद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१४॥ सुर विद्या को नहीं चाहैं, निज चारित विरद निवाहैं। दस पूर्व ऋद्धि यह पायो, भये सिद्ध मुनिन गुण गायो॥
. ॐ ह्रीं दसपूर्वरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१५॥ चौदह पूरव श्रुतज्ञानी, जानें परोक्ष परमानी। प्रत्यक्ष लखो तिस सारूँ, भये सिद्ध हरों अर्घ म्हारूँ॥ ॐ ह्रीं चौदहपूर्वरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१६॥
सुन्दरी छन्द ज्योतिषादिक लक्षण जानकैं.,
शुभ अशुभ फल कहत बखानिकै। निमित ऋद्धि प्रभाव न अन्यथा,
होय सिद्ध भये प्रणमूं यथा ॥१७॥ ॐ ह्रीं अर्ह अष्टांगनिमित्तरिद्धिजिनसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१७॥