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[३] सिद्धचक्र विधान की विधि यह विधान अष्टाहिका पर्वमें विशेष रूपसे किया जाता है। इस विधानकी विधिवत् करने से अनेकों कष्ट दूर होते हैं। यह विधान सती मैनासुन्दरीने किया था, जिसके प्रभावसे श्रीपाल तथा अन्य सातसौ कुष्ठ रोगियोंका रोग दूर हुआ था। .
आचार्य स्याद्वाद विद्यामें प्रवीण, दोषोंको जाननेवाला, आलस्य रहित, नीरोग, क्रियाकुशल, शीलवान, इन्द्रिय विजेता, देव-शास्त्र-गुरुको प्रमाण माननेवाला होना चाहिये।
विधान स्थान - मंदिरजीमें प्रशस्त स्थानमें हो। उस जगहको अच्छा सजाना चाहिये। घण्टा, पताका, तोरणोंसे युक्त हो। चारों कोनोंमें ४ (चार) कलश रक्खें, जहाँ पर स्त्रियाँ मङ्गल गीत गाती हों। भेरी, मृदङ्ग, झाँझ, मजीरा आदि बाजोंसे युक्त हो।
मांडना की विधि मण्डल पूरने के लिए चौकी कमसे कम ९ फुट लम्बी-चौड़ी होनी चाहिये। चौकीके ऊपर साफ धुली चादर बिछाकर चौकीके चारों तरफ बाँध देनी चाहिये, जिसमें झूल न हो। मांडनाका नमूना ब्लॉकमें देखें।
इन ८ खानोंमें पाँच रङ्गमें रंगे हुए क्रमसे ८-१६-३२-६४-१२८२५६-५१२-१०२४ पुञ्ज रक्खे जाने चाहिये या पुञ्जकी जगह पर 'श्री' लिखा जाये तो उत्तम है।
मांडने की चौकी पर कलश जिनमें पाँच-पाँच हल्दीकी गाँठ, पाँचपाँच सुपारी, एक छोटी-सी चाँदीकी डली, पञ्चरत्न या नवरत्नकी एक