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श्री सिद्धचक्र विधान
बिन कर्म कलङ्कविराजत हैं, अति स्वच्छ महागुण राजत हैं। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
ॐ ह्रीं सिद्धस्वच्छगुणशरणाय नमः अयं ॥१७३॥ मन इन्द्रिय आदिन व्याधितहां, रुषरागक्लेशप्रवेश नह्वां। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
ॐ ह्रीं सिद्धस्वस्थितगुणशरणाय नमः अयं ॥१७४॥ निज रूप विर्षे नित मगन रहैं, परयोग वियोग न दाह लहैं। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
ॐ ह्रीं सिद्धसमाधिगुणशरणाय नमः अर्घ्यं ॥१७५ ॥ श्रुतज्ञान तथा मतिज्ञान दउ, परकाशत हैं यह व्यक्त सऊ। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं।
ॐ ह्रीं सिद्धव्यक्तगुणशरणाय नमः अयं ॥१७६॥ परतक्ष अतीन्द्रिय भाव महा, मन इन्द्रिय बोध न गुह्य कहा। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं। ॐ ह्रीं सिद्धअव्यक्तगुणशरणाय नमः अयं ॥१७७॥
मालिनी छन्द निज गुणवर स्वामी शुद्ध संबोध नामी,
परगुण नहीं लेशा एकही भाव शेषा। मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई,
भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥
ॐ ह्रीं सिद्धगुणागुणस्वरूपाय नमः अयं ॥१७८॥ . सब विधि मल जारा बंध संसार टारा,
जग जिय हिताकरी उच्चता पाय सारी।