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(सिद्ध चक्र
मदकविधान
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यह विधान उपर्युक्त अनेकोपाधि विभूषित रावराजा मर श्रीमन्त मंठ हुकमचन्दजी सा. के पौत्र एव मशीर बहादुर जैनरत्न श्रीमन्त सेठ राजकुमारसिहजी सा MA..LL B के पुत्र म्व वीरेन्द्रकुमारसिहजी की स्मृति में उनके माता-पिता द्वारा प्रकाशित हो रहा है. जोकि इस विषय के खास रुचिमान् है। - क्योंकि श्रीमान् भैया सा ( राजकुमारसिहजी सा.) पूजन के खास प्रेमी है। इतनाही नहीं बल्कि आपका यह नियम है कि किसी खास प्रतिबन्ध के बिना इन्दौर में रहते हुए विना पूजन किये कभी भोजन नहीं करते । आपने अपने गृह चैत्यालय में अपनी रुचि के अनुसार विशालकाय एवं अत्यन्त मनोहर श्री १००८ चन्द्रप्रभु भगवान् की तथा एक सिद्ध भगवान् की प्रतिमा भी विराजमान करवाई है । और आप वहां नित्य ही पूजन किया करते है । आपके ही समान आपकी धर्मपत्नी [ लाडी सा. ] श्रीमती साहित्यविशारदा सौ. प्रेमकुमारीजी सा भी सभी गृहस्थी के कार्यों में कुशल एव बुद्धिमती होने के सिवाय धर्मरोचिष्णु है । आप दोनो ही की रुचि और इच्छा के अनुसार यह विधान प्रकाशित हो रहा है।
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__स्व. चि. वीरेन्द्रकुमारसिंहजी का जन्म श्रावण कृ.४ स. १९९१ ता ३०-७-३४ और म्वर्गवास आषाढ शु.२ सं. १९९८ को हुआ। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आपका इलाज अच्छे से अच्छा और अपरिमित व्यय करके जो कुछ भी हो सकता था किया गया, किन्तु अत्यन्त दु.ख के साथ कहना पड़ता है कि वैद्यों, हकीमों और डॉक्टरों के सभी उपाय चिर प्रयत्न करने पर भी व्यर्थ ही गये और आपने सबके
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