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________________ - सिद्ध चक्र ह्रीं मंडल विधान) - तीसरी जयमाला का अर्थ रागरहित, सदारहनेवाले, शान्त-क्रोधादिरहित, निरश-विभागरहित-अखण्ड, रोगरहित, निर्भय, निर्मल, भेदविज्ञानपूर्ण आत्मस्वरूप, उत्तम तेज स्वरूप, उत्कृष्टज्ञान के निधान-खजाने हे मोहरहित विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ १॥ सासारिक भावो से दूर, अगरहित, शम परिणामरूपी अमृत से पूर्ण, देव, सगरहित, निबंध और कषायरहित निमोह विशुद्ध सिद्ध समूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥२॥ पाप कर्म के पाश-जाल का जिन्होने निवारण कर दिया है, जो सदा निर्मल केवल ज्ञान की क्रीडा के निवास स्थान है, ससार समुद्र के पार को प्राप्त हो चुके है, ऐसे शांत निर्मोह विशुद्ध सिद्ध समूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ॥ ३ ॥ अनन्त सुख रूपी अमृत के समुद्र, धीर, पापरूपी लि के भार को उडादेने के लिये प्रबल समीर-वायु के समान, कामदेव की अन्तिम सीमा को भी खण्डित करने वाले निर्मोह विशुद्ध सिद्ध समूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो ।। ४ ॥ विकार भाव से रहित, शोक को ताडित करने वाले, विशिष्ट ज्ञानरूपी .. नेत्र के द्वारा देख लिया है लोक को जिन्होने, जिनका कोई हरण नहीं कर सकता, ऐसे शब्दरहित, विरंग- . संसाररूपी नाटक के रंगस्थल अथवा कषायोंके युद्ध स्थल से विगत, निर्मोह विशुद्ध सिद्धसमूह मेरे ऊपर प्रसन्न हो । ॥ ५ ॥ अज्ञान और अदर्शनरूप मल के खेद से रहित, अशरीर, विच्छेदरहित नित्य सुख के Haati se N
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
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