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= ( सिख अक ही मंडल विधान) =
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विमुंचंति सासुंखलायं सचक्कं । वरं भावयंणे मणो सिद्धचक्कं ॥८॥ सुणीसग्गिझाणेण कम्मट्ठणासं । ललाटे सुवीयं करे मोक्खवासं ।। कुणेदी यकी दिदि भाणं पहायो । सुळंदोवि एसो भुयंगप्पयाओ॥ ॥
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इयवरजयमाला परमरसाला। विधुसेणेन वि कहियथुहि ॥ जो पढइ पढावइ नियमणि भावइ । सो णरु पावइ सिद्धसुहं ॥१०॥
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ॐ ह्रीं सम्मत्त णाण दसण वीरिय सुहम अवग्गहण अगुरुलघु अव्वाह अनाहतपराक्रमाय सकलकर्ममुक्तसिद्धाधिपतये नमः स्वाहा ॥ पूर्णाम् ॥
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