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________________ सिद्ध चक मंडल विधान आठवीं जयमालाका अर्थ | * BOSLU मै उनकी भक्तिपूर्वक पूजा-स्तुति करता हॅू जो कि त्रिभुवनके पतियों— सुरेन्द्रों व असुरेन्द्रो के द्वारापूज्य हैं, पुण्य और पाप दोनो ही से रहित है, कलुषता जिनकी नष्ट हो चुकी है, संसार पर्यायको जिन्होने छेद डाला है, जगतीपतियों नरेन्द्रोके द्वारा जो सेव्य है, उत्तम कल्याणरूप सभीचीनगुणों से युक्त और लोकके शिरोभागापर प्रकाशमान है ॥ १ ॥ अपार ससारके जीवनरूप कर्मो के समस्त भेदोंका विदारण करनेमे सिंहसमान, तीन लोकके शिवरपर विराजमान, पवित्र, विबुद्ध, महान् सुखमे निमग्न तेजःस्वरूप सिद्धपरमेष्ठिन् आप जयवन्त रहे ॥ २ ॥ कभी भी खण्डित न होनेवाली चित्स्वरूप शातिके करण्ड - पिटारे, घनरूप अद्वितीय सर्वोत्कृष्ट शक्तिके पिंड, उत्पत्तिके भयसे रहित, महासुखमे मग्न तेज स्वरूप समृद्ध सिद्धदेव आप जयवत रहे ॥ ३ ॥ सुरसुर और बरर्णाद्वोके द्वारा पूज्य, दुर्भरभावोंसे दूर, भलेप्रकार पूज्य, सम्यक् केवलज्ञान दर्शनसे समृद्ध, महानसुमें निमग्न तेज स्वरूप सिद्धभगवन् आपजयवत रहे || ४ || दिनमे दिखाई पड़नेवाले सूर्य और चन्द्रमाके समान या उससे भी अधिक विशुद्ध है विकाश जिनका, तेजोभारसे भूषित, स्वभावसे ही स्थिर, क्रोधरहित होकर भी विपत्तिरूपी वृक्षोके कन्द-तनेका उच्छेदन करने के लिए कुठारके समान महान् सुखमें निमग्न तेजः स्वरूप सिद्ध परमेष्ठिन् आप जयवत रहे ॥ ५ ॥ जिनाधिप अर्हन्तके ज्ञानके द्वारा जिनके भावका निरूपण किया गया है, अतिशय सूक्ष्मत्वगुणके स्वामी, नीरूप, शब्दरहित, बाधारहित, विकस्वर- दुष्प्राप्ति या थकावट १४७ 1
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
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