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________________ नारी का बन्ध-विमोचन नवोदित सूर्य की रश्मियां व्योमतल में तैरती हुई धरती पर आ रही हैं । तिमिर का सघन आवरण खण्ड-खण्ड होकर शीर्ण हो रहा है। प्रकाश के अंचल में हर पदार्थ अपने आपको प्रकट करने के लिए उत्सुक-सा दिखाई दे रहा है। नींद की मादकता नष्ट हो रही है । जागरण का कार्य तेजी के साथ बढ़ रहा है। चंपा के नागरिकों ने जागकर देखा, उनकी नगरी शत्रु की सेना से घिर गई है। वे इस आकस्मिक आक्रमण से आश्चर्य-स्तब्ध हैं । 'यह किसकी सेना है ? इसने किस हेतु से हमारी नगरी पर घेरा डाला है ? क्या पहले कोई दूत आया था ?क्या हमारे राज्य की सेना इस आकस्मिक आक्रमण के लिए तैयार है।' यत्र-तत्र ये प्रश्न पूछे जाने लगे। पर इनका समुचित उत्तर कौन दे ? राजा दधिवाहन वहां उपस्थित नहीं था। वह सुभद्र की सहायता के लिए गया हुआ था। सुभद्र छोटा राजा था। वह चंपा की अधीनता में अपना शासन चलाता था। उसने अपनी रूपसी कन्या की सगाई अहिच्छना के राजकुमार के साथ कर दी। भहिला के राजा मदनक को यह प्रिय नहीं लगा। वह उस कन्या को अपने अंतःपुर में लाना चाहता था। उसने सुभद्र को युद्ध की चुनौती दे दी। सुभद्र ने दधिवाहन की सहायता चाही। दधिवाहन अपनी सेना के साथ रणभूमि में पहुंच गया। वत्स देश का अधिपति शतानीक अंग देश को अपने राज्य में विलीन करने का स्वप्न संजोए बैठा था। एक बार अंग देश की सेना ने उसका स्वप्न भंग कर दिया था, इसका भी उसके मन में रोष था। शतानीक का सेनापति काकमुख धारिणी के स्वयंवर में असफल हो चुका था। दधिवाहन की सफलता पर उसे ईर्ष्या हो गई। धारिणी के प्रति उसके मन में अब भी आकर्षण था। शतानीक की स्वप्नपूर्ति और काकमुख की प्रतिशोध-भावना को एक
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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