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________________ ध्यान, आंसन और मौन ৪৬ साधना की। भगवान् ध्यान के समय ऊर्ध्व, अंधः और तिर्यक् तीनों को ध्येय बनाते थे। ऊर्ध्व लोक के द्रव्यों का साक्षात् करने के लिए वे ऊर्ध्व-दिशापाती ध्यान करते थे। अधो लोक के द्रव्यों का साक्षात् करने के लिए वे अधो-दिशापाती ध्यान करते थे। तिर्यक् लोक के द्रव्यों का साक्षात् करने के लिए वे तिर्यक्-दिशापाती ध्यान करते थे। वे ध्येय का परिवर्तन भी करते रहते थे। उनके मुख्य-मुख्य ध्येय ये थे१. ऊर्ध्वगामी, अधोगामी और तिर्यग्गामी कर्म । २. बंधन, बंधन-हेतु और बंधन-परिणाम । ३. मोक्ष, मोक्ष-हेतु और मोक्ष-सुख । ४. सिर, नाभि और पादांगुष्ठ । ५. द्रव्य, गुण और पर्याय । ६. नित्य और अनित्य। ७. स्थूल-संपूर्ण जगत्। ८. सूक्ष्म-परमाणु । ९. प्रज्ञा के द्वारा आत्मा का निरीक्षण। भगवान् ध्यान की मध्यावधि में भावना का अभ्यास करते थे। उनके भाव्यविषय ये थे१-एकत्व-जितने संपर्क हैं, वे सब सांयोगिक हैं। अंतिम सत्य यह है कि आत्मा अकेला है। २-अनित्य-संयोग का अन्त वियोग में होता है । अतः सब संयोग अनित्य ३-~-अशरण-अंतिम सचाई यह है कि व्यक्ति के अपने संस्कार ही उसे सुखी और दुःखी बनाते हैं। बुरे संस्कारों के प्रकट होने पर कोई भी उसे दुःखानुभूति से बचा नहीं सकता। भगवान् ध्यान के लिए प्रायः एकान्त स्थान का चुनाव करते थे। वे ध्यान १. आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, पृ० ३००। २.(क) दिशापाती ध्यान में दिशा-क्रम१ ऐंद्री ६. वायव्या २. माग्नेयी ७. सोमा ३. याम्या ८. ऐशानी ४. नैऋती ६. विमला (कर्व) ५. वारुणी १०. तमा (अधः) (ख) मायारो, ६।४।१४ ३. आचारांगचूणि, पृ० ३२४
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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