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ध्यान ही यह रचना
০ গ-ি থম • मानप्रनिमा-मार बाग -- एक बार। ० मनोभत्र निमार उपवान - एक बार।
भगवान् मापनाकाल में नियं, नीन नो पनाम दिन भोजन दिया, निरन्तर भोजन नाभी नहीं किया। उपयामकान में जन सामी नही पिया। उनकी कोई भी गया दो जवान में काम नहीं थी।'
भगवान की माधना मे दो बंग:-उपवान और प्यान । हमने भगवान की जगत का निर्माण किया, जिगने उपचास किए। जिसने ध्यान किया पा, जग निर्माण में हमने उपेक्षा बन्नी मीदिए जनता के मन में भगवान् मा दीपंपरची पमित जगमी ध्यान-गमादिने पर परिमित
भगवान तो ध्यान-लीन , फिर ला उपवान शिलिए किए ?" 'कादिनी दो धान बन रहीदी सानियः गरीर और चतन्य में
मापिन पर । गरट दागिर उनमे भद की प्रारना मार रहे । महावीर मेट का निधान्त पोवीकार गार उनको प्रयोग में सोहा पह मिल पारमा पानी परिस्थान गरीर की तुलना में सुधार पर और नाम गरीर की
मता में मन और मन की गुलमा आत्मा की गति समीम । उनी नम्बी THI मश्योग की धाय पी। या" माना जाता:शिम पार भोजन शा बिरा, जन विधिनायकही जीनता और बाग लिय पिता को जी सोना । किन्तु भगवानको माग र भोजन और मन को मोटर
प्रमाणितबार पासमा मालिन प्राप्त होने पर नगर जी पायो शाली बीवनीट, मण, पान और दानापान