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श्रमण महावीर हाथी आया। उसने अपने दांतों से महावीर पर तीखे प्रहार किए। पर वह माहरवी को विचलित नहीं कर सका । हाथी के अदृश्य होते ही एक विषधर सर्प सामने आ गया। उसकी भयंकर फुफकार से भयभीत होकर पेड़ पर बैठी चिड़ियां चहकने लग गईं। उसने महावीर को काटा पर उनके मन का एक कोना भी प्रकंपित नहीं हुआ। यक्ष का आवेश शान्त हो गया।'
महावीर के जीवन में यह घटना घटित हुई या नहीं, यक्ष ने उन्हें कष्ट दिया या नहीं, इन विकल्पों का समाधान आप मांग सकते हैं, पर मैं इनका क्या समाधान दूं ?जिन ग्रन्थों के आधार पर मैं इन्हें लिख रहा हूं, वे आपके सामने हैं। यदि आप अन्तर्-जगत् में मेरे साथ चलें तो मैं इनका समाधान दे सकता हूं।
अब हम अन्तर्-जगत् के प्रथम द्वार में प्रवेश कर रहे हैं। यहां विचार ही विचार हैं। अभी हम प्रवेश कर ही रहे हैं, इसलिए हमें इनकी भीड़ का सामना करना होगा। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, इनकी भीड़ कम होती चली जायेगी। दूसरे द्वार के निकट पहुंचते-पहुंचते वह समाप्त हो जाएगी।
अब हम दूसरे द्वार में प्रवेश कर रहे हैं। यहां हमें सपनों की संकरी गलियों में से गुजरना होगा। आगे चलकर हम एक राजपथ पर पहुंच जाएंगे। ___अब हम तीसरे द्वार में प्रवेश कर रहे हैं । ओह ! कितनी भयानक घाटियां ! कितने बीहड़ जंगल ! ये सामने खड़े हैं भूत और प्रेत । ये जंगली जानवर मारने को आ रहे हैं। ये अजगर, ये विषधर और ये विच्छू ! कितना घोर अंधकार ! हृदय को चीरने वाला अट्टहास ! भयंकर चीत्कारें ! कितना डरावना है यह लोक ! कितनी खतरनाक है यह मंज़िल !
सामने जो दीख रहा है, वह चौथा प्रवेश-द्वार है। वहां प्रकाश ही प्रकाश है, सब कुछ दिव्य ही दिव्य है। उसमें प्रवेश पाने वाला उस मंजिल पर पहुंच जाता है, जहां पहुंचने पर अन्यत्न कहीं पहुंचना शेष नहीं रहता। किन्तु इन खतरनाक घाटियों को पार किए बिना, इन भूत-प्रेतों और जंगली जानवरों का सामना किए विना कोई भी वहां नहीं पहुंच पाता।
ये द्वार और कुछ नहीं हैं । हमारे मन की चंचलता ही द्वार हैं । उनका खुलना और कुछ नहीं है । हमारे मन की एकाग्रता ही उनका खुलना है। ये विचार और स्वप्न और कुछ नहीं हैं। हमारे संस्कारों को बाहर फेंकना ही विचार और स्वप्न हैं । ये भूत-प्रेत और जंगली जानवर और कुछ नहीं हैं। हमारे चिरकाल से अर्जित, छिपे हुए संस्कार का उन्मूलन ही भूत-प्रेत और जंगली जानवर हैं।
भगवान् महावीर के पार्श्व में होने वाले अट्टहास, हाथी और विषधर उन्हीं के द्वारा प्रताड़ित संस्कारों के प्रतिविम्ब हैं। वे उन खतरनाक घाटियों को एक.
१. आवश्यकचूमि, पूर्वभाग, पृ० २७३, २०४ ।