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जीवन का विहंगावलोकन
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११. अविझाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाणं ।
उड्ढमहेतिरियं च, लोए झायइ समाहिमपडिन्ने ॥ -भगवान् विविध आसनों में स्थिर होकर ध्यान करते थे। वे ऊर्ध्व
लोक, अधोलोक और तिर्यक् लोक को ध्येय बनाकर ध्यान करते थे। ४. मौन १२. पुट्ठो वि णाभिभासिसु ।'
-भगवान् पूछने पर भी प्रायः नहीं बोलते थे।
१३. रीयइ माहणे अबहुवाई।
----भगवान् बहुत नहीं बोलते थे। अनिवार्यता होने पर कुछेक शब्द बोलते थे।
१४. अयमंतरंसि को एत्थ ? अहमंसित्ति भिक्खू आहटु ।'
-'यहां भीतर कौन है ?' ऐसा पूछने पर भगवान् उत्तर देते- 'मै भिक्षु
५. निद्रा १५. णिइंमि णो पगामाए, सेवइ भगवं उठाए ।
जग्गावती य अप्पाणं, ईसि साई यासी अपडिन्ने ।
-भगवान् विशेष नींद नहीं लेते थे । वे बहुत वार खड़े-खड़े ध्यान करते तव भी अपने आपको जागृत रखते थे। वे समूचे साधना-काल में बहुत थोड़े सोए। साढ़े बारह वषों में मुहूर्त भर भी नहीं सोए।
१६. णिक्खम्म एगया राओ, बहि चंकमिया महत्तागं ।'
कभी-कभी नींद सताने लगती तब भगवान् चंक्रमण कर उस पर विजय पा लेते । वे निरन्तर जागरूक रहने का प्रयत्न करते।
१. लायारो : ६।१।१४॥ २. आयारो : ६१७ 1 ३. आयारो : ६२।१०। ४. नायारो : ६२।१२। ५. बायारो : ६२।५। ६. आयारो : हारा।