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________________ जीवन का विहंगावलोकन २७९ ११. अविझाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाणं । उड्ढमहेतिरियं च, लोए झायइ समाहिमपडिन्ने ॥ -भगवान् विविध आसनों में स्थिर होकर ध्यान करते थे। वे ऊर्ध्व लोक, अधोलोक और तिर्यक् लोक को ध्येय बनाकर ध्यान करते थे। ४. मौन १२. पुट्ठो वि णाभिभासिसु ।' -भगवान् पूछने पर भी प्रायः नहीं बोलते थे। १३. रीयइ माहणे अबहुवाई। ----भगवान् बहुत नहीं बोलते थे। अनिवार्यता होने पर कुछेक शब्द बोलते थे। १४. अयमंतरंसि को एत्थ ? अहमंसित्ति भिक्खू आहटु ।' -'यहां भीतर कौन है ?' ऐसा पूछने पर भगवान् उत्तर देते- 'मै भिक्षु ५. निद्रा १५. णिइंमि णो पगामाए, सेवइ भगवं उठाए । जग्गावती य अप्पाणं, ईसि साई यासी अपडिन्ने । -भगवान् विशेष नींद नहीं लेते थे । वे बहुत वार खड़े-खड़े ध्यान करते तव भी अपने आपको जागृत रखते थे। वे समूचे साधना-काल में बहुत थोड़े सोए। साढ़े बारह वषों में मुहूर्त भर भी नहीं सोए। १६. णिक्खम्म एगया राओ, बहि चंकमिया महत्तागं ।' कभी-कभी नींद सताने लगती तब भगवान् चंक्रमण कर उस पर विजय पा लेते । वे निरन्तर जागरूक रहने का प्रयत्न करते। १. लायारो : ६।१।१४॥ २. आयारो : ६१७ 1 ३. आयारो : ६२।१०। ४. नायारो : ६२।१२। ५. बायारो : ६२।५। ६. आयारो : हारा।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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