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________________ यथार्थवादी व्यक्तित्व : अतिशयोक्ति का परिधान २६१ साय पीटा करने लगा । एक वृक्ष को लक्ष्य बनाकर दोनों दौड़े । अर्धमान ने उससे पहले वृक्ष को छू लिया। वे विजयी हो गए। वह पराजित हुआ। क्रीड़ा के नियमानुसार विजयी वच्चा पराजित बच्चे को घोड़ा बनाकर उस पर चढ़ता है। वर्धमान पराजित बच्चे को घोड़ा बना, उस पर चढ़कर क्रीडास्पल में आने लगे। उस समय उस बच्चे आकाम को छूने वाला रूप बना लिया । वर्धमान देवी माया को समक्ष गये। उन्होंने एक मुष्टि का प्रहार किया। देव का विशाल गरीर उम मुष्टि-प्रहार से सिमट गया । उसे वर्धमान के पराक्रम का पता चल गया । उसे अपने कार्य पर लज्जा का अनुभव हुमा । मानवीय पराक्रम के सामने उसका सिर झुक गया। इन्द्र स्वर्ग में बैठा-बैठा यह सब देख रहा था । अपने वचन की सचाई प्रमाणित होने पर वह वर्धमान के पास माया। उसकी स्तुति कर इन्द्र ने वर्धमान फा महावीर नाम कर दिया। इस घटना को आप भागवत की निम्नलिखित घटना के सन्दर्भ में पढ़िएकृष्ण और बलभद्र ग्वाल बालकों के साथ आपस में एक-दूसरे को घोड़ा बनाकर उस पर चढ़ने का सेल सेल रहे थे। उस समय कंस द्वारा भेजा हुआ प्रलंव नामफ असुर उस खेल में सम्मिलित हो गया। वह कृष्ण और बलभद्र को उठा ले जाना पाहता पा । वह बलभद्र का घोड़ा बनकर उन्हें दूर ले गया। उसने प्रचण्ड विकराल रूप प्रकट किया । बलभद्र इन घटना से भयभीत नहीं हुए। उन्होंने एक मुष्टिप्रहार किया। उससे मसुर के मुंह से खून गिरने लगा। अन्त में उसे मार डाला।' उपत दोनों घटनाओं में कवि की लेखनी का चमत्कार है। महावीर के परामम की अभिव्यक्ति देने के लिए कवि ने कुछ स्पकों की कल्पना की है । रूपका सत्य है या असत्य-इस बात से पावि फो कोई प्रयोजन नहीं है। उसका जो प्रयोजन है, वह सत्य है । महावीर का पराक्रम अद्भुत और असाधारण था, इस रहस्य का उद्घाटन ही कवि का प्रयोजन है। यह सत्य है। सत्य की दृष्टि प्राप्त होने पर तथ्य को चढ़ाई सहज-सरल हो जाती है। Punym ५. xANErregi:९, १०१६-२४ २. Mer. 4 . it
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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