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________________ २२६ श्रमण महावीर जो स्वयं अनाथ है, वह दूसरे का नाथ कैसे बन सकता है ?'... . .. .. ... : ____ मुनि का यह वचन सुन राजा स्तब्ध रह गया। वह अपने मर्म को सहलाते हुए बोला-'आप मुनि हैं, गृहस्थ नहीं हैं। क्या आपके धर्माचार्य भगवान् महावीर ने आपको सत्य का महत्त्व नहीं समझाया है ?' 'समझाया है, बहुत अच्छी तरह से समझाया है।' 'फिर आप मुझे अनाथ कैसे कहते हैं ? क्या आप मुझे जानते नहीं ?' 'जानता हूं, तभी कहता हूं। मैं तुम्हें नहीं जानता तो अनाथ कैसे कहता ?' 'मैं आपकी बात नहीं समझ पाया। मेरे पास राज्य है, सेना है, कोष है, अनुग्रह और निग्रह की शक्ति है, फिर मैं अनाथ कैसे ?'. राजा का तर्क सुन मुनि बोले-'राजन् ! तुमने नहीं समझा कौन व्यक्ति अनाथ होता है और कौन सनाथ ? व्यक्ति कैसे अनाथ होता है और कैसे सनाथ ? मैं भिखारी का पुत्र नहीं हूं। मेरा पिता कौशाम्बी का महान् धनी है । मुझे पूर्ण ऐश्वर्य और पूर्ण प्रेम प्राप्त था। मैं जीवन को पूरी तन्मयता से जी रहा था । एक दिन अचानक मेरी आंख में शूल चलने लगी। मैं पीड़ा से कराह उठा। मेरे पिता ने मेरी चिकित्सा कराने में कोई कसर नहीं रखी। जाने-माने वैद्य आए, पर वे मेरी पीड़ा को दूर नहीं कर सके। मेरे पिता ने मेरे लिए धन का स्रोत-सा बहा दिया पर वे मेरी पीड़ा को दूर नहीं कर सके । मेरी माता, भाई और स्वजन वर्ग • ने अथक चेष्टाएं की पर वे मेरी पीड़ा को दूर नही कर सके। मेरी पत्नी ने अनगिन आंसू बहाए । उसने खान-पान तक छोड़ दिया। वह निरंतर मेरे पास बैठी-बैठी सिसकती रही पर वह मेरी पीड़ा को दूर नहीं कर सकी । मैं अनाथ हो गया। मुझे ताण देने वाला कोई नहीं रहा । तब मुझे भगवान महावीर की वाणी याद आई। मैंने अपना नाण अपने में ही खोजा। मैंने संकल्प किया-मेरी चक्षु-पीड़ा शान्त हो जाए तो मैं भगवान् महावीर की शरण में चला जाऊं, सर्वात्मना आत्मा के लिए समर्पित हो जाऊं। सूर्योदय के साथ रात्रि का सघन अंधकार विलीन हो गया। संकल्प के गहन निकुंज में मेरी चक्ष-पीड़ा भी विलीन हो गई। मैं प्रसन्न था, मेरे पारिवारिक और चिकित्सक लोग आश्चर्य-चकित। मैंने अपना संकल्प प्रकट किया तब सब लोग अप्रसन्न हो गए और मैं आश्चर्य-चकित । मैंने सोचा-अनाण व्यक्ति दूसरों को भी अनाण देखना चाहते हैं। मैंने उस स्थिति को स्वीकार नहीं किया। मैं मुनि बन गया।' ___मुनि की आत्म-कथा श्रेणिक के धर्म-परिवर्तन की कथा बन गई । वह मुनि की ओर ही आकृष्ट नहीं हुआ, भगवान् महावीर और उनकी धर्म-देशना के प्रति भी आकृष्ट हो गया। १. देवे-उतराध्ययन का वीसवां मध्ययन ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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