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________________ समता के तीन आयाम २०३ गई। उसके चिदाकाश में जागृति की पहली किरण प्रकट हुई। उसने जागृति के क्षण में फिर उस प्रश्न को दोहराया- ., 'तुम कौन हो ?' 'मैं भगवान् महावीर का उपासक हूं।' 'कहां जा रहे हो?' 'भगवान् महावीर की उपासना करने जा रहा हूं।' 'क्या मैं भी जा सकता हूं?' 'किसी के लिए प्रवेश निषिद्ध नहीं है।' अर्जुन सुदर्शन के साथ भगवान के पास पहुंचा। आरक्षिकों ने श्रेणिक को सूचना दी कि पाप शान्त हो गया है। राजपथ निर्विघ्न है। निरंकुश हाथी पर अंकुश का नियंत्रण है । अर्जुन सुदर्शन के साथ भगवान महावीर के पास चला गया है। राजकीय घोषणा के साथ राजपथ का आवागमन खुल गया । भगवान् के कण-कण में अहिंसा का प्रवाह था। मैत्री और प्रेम की अजस्र धाराएं वह रही थीं। उसमें स्नात व्यक्ति की क्रूरता धुल जाती थी। अर्जुन का मन मृदुता का स्रोत बन गया। ___मनुष्य के अन्तःकरण में कृष्ण और शुक्ल-दोनों पक्ष होते हैं । जिनकी चेतना तामसिक होती है, वे प्रकाश पर तमस् का ढक्कन चढ़ा देते हैं। जिनकी चेतना आलोकित होती है, वे प्रकाश को उभार तमस् को विलीन कर देते हैं । भगवान् ने अर्जुन के अन्तःकरण को आलोक से भर दिया। उसके मन में समता की दीपशिखा 'प्रज्वलित हो गई। वह मुनि बन गया। ___ कल का हत्यारा आज का मुनि-यह नाटकीय परिवर्तन जनता के गले कैसे उतर सकता है ? हर आदमी उस सत्य को नहीं जानता कि मनुष्य के जीवन में बड़े परिवर्तन नाटकीय ढंग से ही होते हैं । असाधारण घटना साधारण ढंग से नहीं हो सकती । साधारण आदमी असाधारण घटना को एक क्षण में पकड़ भी नहीं पाता। अर्जुन से आतंकित जनता उसके मुनित्व को स्वीकार नहीं कर सकी। अर्जुन ने भगवान् के पास समता का मंत्र पढ़ा। उसकी समता प्रखर हो गई। मान-अपमान, लाभ-अलाभ, जीवन-मृत्यु और सुख-दुःख में तटस्थ रहना उसे प्राप्त हो गया। कुछ दिनों बाद मुनि अर्जुन भिक्षा के लिए. राजगृह में गया। घर-घर से आवाजें आने लगीं-इसने मेरे पिता को मारा है, भाई को मारा है, पुन को मारा है, माता को मारा है, पत्नी को मारा है, मिन को मारा है। कहीं गालियां, कहीं व्यंग, कहीं तर्जना और कहीं प्रताड़ना । अर्जुन देख रहा है-यह कृत-की प्रतिक्रिया है, अतीत के अनाचरण का प्रायश्चित्त है। उसे यदि रोटी मिलती है तो पानी नहीं मिलता और यदि पानी मिलता है तो रोटी नहीं मिलती। पर
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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