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________________ चक्षुदान १९५ 'तो अटल है तुम्हारा निश्चय ?' "मंते ! अव टलने को अवकाश ही कहां है ? आपने बाहर जाने का दरवाजा ही बंद कर दिया।' ____ भगवान् ने मेघ को अर्थभरी दृष्टि से देखा । वह धन्य हो गया। उसकी चेतना अपने अस्तित्व में लौट आई। उसका हृदय-कोश शाश्वत ज्योति से जगमगा उठा । वह मन ही मन गुनगुनाने लगा 'बहुत लोग नहीं जानतेमैं पूरब से आया हूं कि पश्चिम से ? दक्षिण से आया हूं या उत्तर से ? दिशा से आया हूं या विदिशा से? ऊपर से आया हूं या नीचे से ? भगवान् ने मुझे ढकेला अतीत के गहरे में, मैं देख आया हूँ, मेरा पहला पड़ाव। भंते ! वह द्वार भी खोल दो, . . मैं देख आऊं मेरा अगला पड़ाव।२ गहरे में, १. नायाधम्मकहाओ, १११५२-१५४। २. आयारो, १।१-३। ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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