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________________ १६८ श्रमणं महावीर अपरिग्रही है। ४. जिसके मन में मूर्छा भी है और पास में संग्रह भी है, वह परिग्रही है। भगवान् ने सामाजिक मनुष्य को अपरिग्रह की दिशा में ले जाने के लिए परिग्रह-संयम का सूत्र दिया। उसका भीतरी आकार था इच्छा-परिमाण और बाहरी आकार था वस्तु-परिमाण । इच्छा-परिमाण मानसिक स्वामित्व की मर्यादा है । इसे भाषा में बांधा नहीं जा सकता। वस्तु-परिमाण व्यक्तिगत स्वामित्व की मर्यादा है। यह भाषा की पकड़ में आ सकती है। इसीलिए भगवान ने इच्छापरिमाण को वस्तु-परिमाण के साथ निरूपित किया। वस्तु-परिमाण इच्छा-परिमाण का फलित है। वस्तु का अपरिमित संग्रह वही व्यक्ति करता है जिसकी इच्छा अपरिमित है । वस्तु के आधार पर परिग्रह की दो दिशाएं बनती हैं १. महा परिग्रह-असीम व्यक्तिगत स्वामित्व । २. अल्प परिग्रह-सीमित व्यक्तिगत स्वामित्व । भगवान् महावीर ने अल्प-परिग्रही समाज-रचना की नींव डाली। इसमें लाखों स्त्री-पुरुप सम्मिलित हुए। उन्होंने अपनी आवश्यक सम्पत्ति से अधिक संग्रह नहीं करने का संकल्प किया। भगवान् ने संग्रह की गाणितिक सीमा का प्रतिपादन नहीं किया। उन्होंने संग्रह-नियंत्रण की दो दिशाएं प्रस्तुत की। पहली-अर्थार्जन में माधन-शुद्धि का विवेक और दूसरी-व्यक्तिगत जीवन में संयम का अभ्यास । अल्प-परिग्रही व्यक्तियों के लिए निम्न आचरण वजित थे १. मिलावट। २. झूठा तोल-माप। ३. असली वस्तु दिखाकर नकली वस्तु देना। ४. पशुओं पर अधिक भार लादना। ५. दूसरों की आजीविका का विच्छेद करना। भगवान् ने अनुभव किया कि बहुत सारे लोग सुदूर प्रदेशों में जाते हैं और ये उम प्रदेश की जनता के हितों का अपहरण करते हैं। इस प्रवृत्ति से आक्रमण और संग्रह-दोनों को प्रोत्साहन मिलता है। भगवान् ने इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए 'दिगवत' का प्रतिपादन किया। उनके अल्प-परिग्रही अनुयायियों ने अपने प्रदेश मे बाहर जाकर मर्याजन करना त्याग दिया। अप्राप्त भोग और सुख को प्राप्त करने के लिए दूसरे प्रदेशों में जाना उनके लिए निपिद्ध आचरण हो गया। मल्यान् ने जन-जन में अपरिग्रह की निष्ठा का निर्माण किया। 'पूनिया' उस निका का चलन्त प्रतीक था। मम्राट् थेणिक ने उससे कहा-'तुम एक सामायिक (ममता की साधना का व्रत) मुझे दे दो। उसके बदले में मैं तुम्हें आधा राज्य दे
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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