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________________ क्रान्तिका सिंहनाद मिलेगा, ४. जो लोग इसलिए ब्रह्मचारी बनते हैं कि अगले जीवन में अप्सराएं मिलेंगी, ५. जो लोग इसलिए सब कुछ छोड़ते हैं कि अगले जीवन में यह सब कुछ हज़ार गुना बढ़िया और लाख गुना अधिक मिलेगा, - वे सब लोग शरीर, इन्द्रिय और मन को सताने की दोहरी मूर्खता कर रहे है । यह संताप है, साधना नहीं है । ' १५३ जो लोग इन सबको इसलिए छोड़ते हैं कि जो अपना नहीं है, उसे छोड़ना ही सुख है । यह साधना है, संताप नहीं है । वस्तुओं को छोड़ना उसे अच्छा लगता है, इसलिए वह सुख है । उन्हें छोड़ने पर कष्ट झेलना अच्छा लगता है, इसलिए वह भी सुख है । इसे आप मान सकते हैं कि सुख ते सुख उत्पन्न होता है या दुःख से सुख उत्पन्न होता है । 1 ६. जनता की भाषा जनता के लिए लता का प्राण पुष्प और पुष्प का प्राण परिमल है । परिमल की अभिव्यंजना से पुष्प और लता - दोनों जगत् के साथ तदात्म हो जाते हैं । मनुष्य की तदात्मता भी ऐसी ही है । उसके चिन्तन-पुष्प में भाषा की अभिव्यंजना नहीं होती तो जगत् तदात्म से शून्य होकर सम्पर्क से शून्य हो जाता । भाषा सम्पर्क का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है । मन को मन से पकड़ने वाले लोग बहुत कम होते हैं । संकेत की शक्ति सीमित है । मनुष्य बोलकर अपनी बात दूसरों तक पहुंचाता है । भाषा का प्रयोजन ही है अपने भीतर के जगत् को दूसरे के भीतरी जगत् से मिला देना । भाषा एक उपयोगिता है। अपने शैशव में उपयोगिता केवल उपयोगिता होती है । यौवन को देहलीज पर पैर रखते ही यह अलंकार बन जाती है । प्राण-शक्ति प्रखर होती है, सोन्दयं सहज होता है, तब अलंकार की अपेक्षा नहीं होती । प्राण की ज्योति मन्द होने लगती है तब अलंकार की आकांक्षा प्रवल होना चाहती है। युग ऐसा आया कि भाषा भी अलंकार बन गई। जो सम्पर्क सूत्र थी, वह बड़प्पन का मानदंड वन गई । पंडित लोग उस संस्कृत में बोलते और लिखते थे जो जनता की भाषा नहीं थी, जनता के लिए अगम्य पी। परिणाम यह हुआ कि दो वर्ग बन गए एक पंडित की भाषा बोलने वालों का और दूसरा जनता की भाषा बोलने वालों का। पंडितों को भाषा असाधारण हो गई और जनता की भाषा साधारण मानी जाने लगी । - महावीर का लक्ष्य था - सबको जगाना | सबको जगाने के लिए जरूरी था १. मगवई, ८ २६६ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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