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________________ १३२ श्रमण महावीर मान्य नहीं है । भगवान् महावीर ने वर्तमान की समस्या का अध्ययन कर वेषभूषा में परिवर्तन किया।' . 'जीवन-यात्रा का निर्वाह वेश-धारण का प्रयोजन है। जनता को उसके मुनि होने की प्रतीति हो, यह भी उसका प्रयोजन है। वेश केवल प्रयोजन की निष्पत्ति है, मुक्ति का साधन नहीं है। उसके साधन हैं-ज्ञान, दर्शन और चारित्र । इस विषय में भगवान् पार्श्व और भगवान महावीर का पूर्ण मतैक्य है।' ___'भगवान् महावीर ने देखा--वर्तमान के मुनि वेश में कुछ आसक्त होते जा रहे हैं। मुनि-जीवन आसक्ति को क्षीण करने के लिए है, फिर उसका वेश आसक्ति को बढ़ाने वाला क्यों होना चाहिए ? इस चिंतन के आधार पर भगवान् ने अवस्त्र रहने का विधान किया और कोई अवस्त्र न रह सके उसके लिए अल्पमूल्य वाले अल्पवस्त्र रखने का विधान किया है । यह द्विधा का प्रयत्न नहीं है, यह मुख्य धारा से पृथक् चलने का प्रयत्न नहीं है, किन्तु उसे इस दिशा की ओर मोड़ने का प्रयत्न केशी के शिष्यों का चित्त समाहित हो गया। उनके मन में एक नई स्फुरणा का उदय हुआ। केशी स्वयं बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने शिष्यों की भावना को पढ़ा और महावीर के तीर्थ में सम्मिलित होने का प्रस्ताव रख दिया। यह गौतम की बहुत बड़ी सफलता थी। महावीर के शासन में एक नया मोड़ लिया। एक प्राचीन तथा प्रभावी स्नोत के मिलन से उसकी धारा विस्तीर्ण हो गई। भगवान् पार्श्व के शिष्यों ने महावीर और उनके तीर्थ को सहज ही मान्यता नहीं दी। वे लम्बी-लम्बी चर्चाओं के बाद उनके तीर्थ में सम्मिलित हुए और कुछ साधु अन्त तक भी उसमें सम्मिलित नहीं हुए। ___ गौतम ने केशी और उनकी शिष्य-संपदा को पंच-महाव्रत की परम्परा में दीक्षित किया। वह एक अद्भुत दृश्य था। उसे देखने के लिए हज़ारों लोग उपस्थित थे। अनेक सम्प्रदायों के श्रमण भी बड़ी उत्सुकता से देख रहे.थे। वह कोई साधारण घटना नहीं थी। वह था अतीत और वर्तमान का सामंजस्य । वह था महान् श्रमण-नेताओं की दो धाराओं का एकीकरण। भगवान् ने रात्रि-भोजन न करने को एक व्रत का रूप दिया। गमन, भाषा, भोजन, उपकरणों का लेना-रखना और उत्सर्ग-इन विषयों में होने वाले प्रमाद और असावधानी का निवारण करने के लिए भगवान् ने पांच समितियों की व्यवस्था की। जैसे १. उत्तरायणाणि, २३।२६-३४ । २. उत्तरज्झयणागि, २३३९६, ८६ । ३. दमवेमालियं, ६२५ । ४. उत्तरज्झयणाणि, २४११,२ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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