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________________ १२२ श्रमण महावीर मंखलिपुत्र गोशालक । वह कुछ वर्षों तक मेरे साथ रहा। फिर उसने मेरा साथ छोड़ दिया। मैंने गोशालक के साथ कुछ बातें की, उसके प्रश्नों का उत्तर दिया, अपने अतीन्द्रिय ज्ञान का थोड़ा-थोड़ा परिचय कराया और आंतरिक शक्ति के कुछ रहस्य भी सिखाए। "भंते ! यह प्रकरण बहुत ही दिलचस्प है, मैं इसे थोड़े विस्तार से सुनना चाहता हूं। मैं विश्वास करता हं, भगवान् मुझ पर कृपा करेंगे।' 'गौतम ! गोशालक आज नियतिवादी हो गया है। नियतिवाद के बीज एक दिन मैंने ही बोए थे।' 'भंते ! यह कैसे ?' 'गौतम ! एक बार हम (मैं और गोशालक) कोल्लाग सन्निवेश से सुवर्णखल की ओर जा रहे थे। मार्ग में एक स्थान पर ग्वाले खीर पका रहे थे। गोशालक ने मुझे रोकना चाहा । मैंने कहा-खीर नहीं पकेगी, हांड़ी फट जाएगी। ____ मैं आगे चला गया। गोशालक वहीं रहा। उसने ग्वालों को सावधान कर दिया । ग्वालों ने हांड़ी को बांस की खपात्रों से बांध दिया। हांड़ी दूध से भरी थी। चावल अधिक थे। वे फूले तब हांड़ी फट गई। खीर नीचे ढुल गई । गोशालक के मन में नियति का पहला बीज-वपन हो गया। उसने सोचा~जो होने का होता है वह होकर ही रहता है। ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुई । एक-दो मुख्य घटनाएं ही मैं तुम्हें बता रहा हूं। एक बार हम लोग सिद्धार्थपुर से कूर्मग्राम जा रहे थे। रास्ते में एक खेत आया। उसमें सात पुष्प वाला एक तिल का पौधा था । गोशालक ने मुझे पूछा'क्या यह फलेगा ?' मैंने कहा-'अवश्य फलेगा। इसके सात पुष्पों के सात जीव एक ही फली में उत्पन्न होंगे।' __मैं आगे बढ़ गया । गोशालक पीछे की ओर मुड़ा । उसने उस खेत में जा तिल के पौधे को उखाड़ दिया। हम कुछ दिन कूर्मग्राम में ठहरकर वापस सिद्धार्थपुर जा रहे थे। फिर वही खेत आया । गोशालक ने कहा -'भते ! वह तिल का पौधा नहीं फला, जिसके फलने की आपने भविष्यवाणी की थी।' मैंने सामने की ओर उंगली से संकेत कर कहा-'यह वही तिल का पौधा है, जिसके फलने की मैंने भविष्यवाणी की थी और जिसे तुमने उखाड़ा था।' १. साधना का तीमरा वर्ष । २. दावश्यकचणि, पूर्व भाग, पृ० २८३ । ३. माधना का दसवां वर्ष ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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