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तीयं और तीर्थकर
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लिए समता आवश्यक है।'
हिंसा, घृणा, पशुबलि और उच्च-नीचता के दमनपूर्ण वातावरण में भगवान् का प्रवचन अमा की सघन संधियारी में सूर्य की पहली किरण जैसा लगा। जनता ने अनुभव किया कि आज इस प्रकाश की अपेक्षा है। महावीर जैसे समयं धर्मनेता के द्वारा वह पूर्ण होगी। उसकी सपन्नता में अपनी आहुति देने के लिए अनेक स्त्री-पुरुप भगवान् के चरणों में समर्पित हो गए।
चन्दनवाला साध्वी बनने के लिए भगवान के सामने उपस्थित हुई। वैदिक धर्म के संन्यासी स्त्री को दीक्षित करने के विरोधी थे। श्रमण-परम्परा में स्त्रियां दीक्षित होती थीं। भगवान् पार्श्व की साध्वियां उस समय विद्यमान थी। किन्तु उनका नेतत्व शिथिल हो गया था। उनमें से अनेक साध्वियां दीक्षा को त्याग परिवाजिकाएं बन चुकी थीं।
भगवान महावीर स्त्री के प्रति वर्तमान दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना चाहते थे। वैदिक प्रवक्ता उसके प्रति हीनता का प्रसार करते थे। भगवान् को वह रप्ट नहीं था। उन्होंने साध्वी-संघ की स्थापना कर स्त्री जाति के पुनरस्पान कार्य को फिर गतिशील बना दिया।
भगवान् ने चंदना को दीक्षित कर उसे साध्वी-संघ का नेतृत्व माप दिया। साधु-संघ का नेतृत्व इन्द्रभूति आदि ग्यारह विद्वानों को सौपा।
भगवान महावीर गणतंत्र के वातावरण में पले-पुसे थे। मत्ता और अर्थक विरेन्द्रीकरण का सिद्धान्त उन के रक्त में समाया हुआ था। वर्तमान में वे अहिंसा को वातावरण में जी रहे थे। उनमें केन्द्रीकरण के लिए कोई अवकान नहीं है।
भगवान् ने साधु-संघ को नौ गणों में विभक्त गार उनकी व्यवस्था का विन्द्रीकरण कर दिया। इन्द्रभूति नादि की गणधर के हर में नियुक्ति की। प्रधम गात गणों का नेतृत्व एक-एक गणधर को नौपा। आठवें गण का नेतृत्व अपित और बचनभाता तथा नौवें गण का नेतत्न मता और प्रभानको नापार संगत नेतृत्व की व्यवस्था की।
जो लोग नाघु-जीवन की दीक्षा लेने में समर्थ नहीं थे, जिन्तु ममता धन में दीक्षित होना चाहते थे, उन्हें भगवान ने अपनत की दीया दी। पादर-मादिता पलाए ।
भगवान महावीर माधु-साध्वी बार मापक-प्राविकामनी-नाप्टपदी स्थापना कर तीर्थकर हो गए। तने दिन भगवान् पति और पवित्र जीवन जीने धे, अद भगवान संपदन गए और उनसे नमीद माल
गया।
ने दिन भगवान् द पलाल ममगई।
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