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________________ नारी का बन्ध-विमोचन ६७ चंदना के सामने लाकर रख दिया। 'पुत्री ! तुम खाओ । मैं लुहार को साथ लिये आता हूँ--इतना कहकर श्रेष्ठी घर से बाहर चला गया। भगवान् महावीर वैशाली और कौशाम्बी के मध्यवर्ती गांवों में विहार कर रहे थे। उन्हें पता चला कि शतानीक ने विजयादशमी का उत्सव चंपा को लटकर मनाया है। उसके सैनिकों ने जीभरकर चंपा को लूटा है और किसी सैनिक ने धारिणी और वसुमती का अपहरण कर लिया है । उनके सामने अहिंसा के विकास की आवश्यकता ज्वलंत हो उठी। वे इस चिंतन में लग गए कि हिंसा कितना बड़ा पागलपन है। उसका खूनी पंजा अपने सगे-सम्बन्धियों पर भी पड़ जाता है । कौन पद्मावती और कौन मृगावती ! दोनों एक ही पिता (महाराज चेटक) की प्रिय पुत्रियां । पद्मावती का घर उजड़ा तो उससे मृगावती को क्या सुख मिलेगा ? पर हिंसा के उन्माद में उन्मत्त ये राजे वेचारी स्त्रियों की बात कहां सुनते हैं ? ये अपनी मनमानी करते हैं। __शक्तिशाली राजे शक्तिहीन राजाओं पर आक्रमण कर उनका राज्य हड़प लेते हैं । यह कितनी गलत परम्परा है। वे जान-बूझकर इस गलत परम्परा को पाल रहे हैं। क्या शतानीक अजर-अमर रहेगा ? क्या वह सदा इतना शक्तिशाली रहेगा ? कौन जानता है कि उसकी मृत्यु के बाद उसके राज्य पर क्या बीतेगा? ये राजे अहं से अन्धे होकर यथार्थ को भुला देते हैं। इस प्रकार की घटनाएं मुझे प्रेरित कर रही है कि मैं अहिंसा का अभियान शुरू करूं। भगवान् को फिर पता चला कि महारानी घारिणी मर गई और वनुनी दासी का जीवन जी रही है। इस घटना का उनके मन पर गहरा लवर हल्ला नारी-जाति की दयनीयता और दास्य-कर्म-दोनों का चित्र उनकी मंडी में सामने उभर आया। उन्होंने मन-ही-मन इसके अहिंसक प्रतिकार की सेना बना ली। साधना का बारहवां वर्ष चल रहा था । भगवान् कोशान्बीजामात का पहला दिन । भगवान् ने संकल्प किया, 'मैं दासी बनी हा रानी ने हाय से ही भिक्षा लूंगा, जिसका सिर मुंडा हुना है, हाथ-पैरों में है. तीन दिन की भूची है और आंखों में आंसू है, जो देहलीज के बीच में बड़ी है रवि वामन शूर्प के कोने में उबले हुए थोड़े से उड़द पड़े हैं।" ___चंदना का यह चित्र भगवान् के प्रातिमनान में संक्ति हो गया। बाड़ी के इन बीभत्स रूप में ही उन्हें चंदना के उज्ज्वल भविष्य कान हो रहा था। भगवान् कोशाम्बी के परों में भिक्षा लेने गए। लोगों ने बड़ी यहा के नाय १ प्रापश्यामि , पूर्वभाग, ३० ३९६, ३१२।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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