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________________ ( ८७ ) वनारहे, उसीकी चेष्टा कीजाती है, भले ही बच्चा बुरी आदतों में ही क्यों न पड़ जावे, उसे कुछ भी ताड़ना देने को तवियत नही होती । मो यह विचार खोटा और मोही जीव का होता है। दूसरी विचारधारा माता की बच्चे के प्रति यह हो सकती है कि इस बच्चे की आत्मा ने जव कि तेरे उदर से शरीर धारण किया है ताकि तू इसकी माता कहलाती है तो तेरा कर्तव्य हो जाता है कि तू इसे ऐसे ढंग से रक्खे ताकि कोई पापमय बुरी आदत न अपना पावे एवं मनुष्यता पर आकर अपना भला कर सके । यह इस प्रकार के विचार से उस बच्चे की सम्भाल रखना सो आत्माश्रित कर्म चेतना है जो कि सम्यग्दृष्टि गृहस्थ जीव की होती है । ताकि वह उस पुत्र पालनरूप कार्य के द्वारा पाप में न फंस कर पुण्य का कर्ता होता है। इसी तरह और भी बातों में सममलेना चाहिये जैसे कि कपड़े पहनना सो एक तो अपने को आरामदायक समझ कर यथावित्त अपने मन को भाने वाला अच्छे से अच्छा कपड़ा पहनता है भले ही वह सज्जनों की दृष्टि में उसके देशकालादि के विरुद्ध भी क्यों न हो। और इसी लिये वह उसमें पापोपार्जन करता है परन्तु दूसरा आदमी शोचता है कि मैं अभी गृहस्थावस्था में हूँ मुझे वन विहीन रहना उचित नहीं, मुझे कपड़ा पहने रहने की ही गुरुवों की आज्ञा है तो वह अपने पदस्थ के योग्य सुघडवल पहरता है और अपना देवाराधनादि का काम निकालवा है सो पुण्य कमाता है । इस प्रकार मिथ्यादृष्टि के कार्यों में और
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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