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सो श्रीमान् जी निमित्त के नाम से आपको क्यों इतनी चिड़ है यह हम अभी तक नही समझ सके, हमारे आचार्यों ने तो विशेष कार्य को निमित्त विशेष के द्वारा ही निष्पन्न होता हुवा बतलाया है । अस्तु । देशना प्राप्त करने के बाद वह जीव क्या करता है सो बताते हैंकुतोजनिमृत्युरयंचकस्माल्याञ्चापिमुक्तिर्ममदुःखतोऽस्मात्, एतागुत्साहिविचारब्धिरुदेतिचित्त'ऽस्यविशुद्धिलब्धिः २४
• अर्थात्- गुरुदेव की बाणी को अवधारण करने से उस भव्यात्मा के चित्त में इस प्रकार विचार होने लगता है कि अहो देखो मैं सच्चिदानन्द होकर भी किस तरह से इस जन्ममरण के चक्कर में फंस रहा हूँ जैसे कि एक राजकुमार किसी भङ्गिन के साथ में लगजावे तो फिर उसके प्रेमके बश होकर उर्स राजकुमार को भी पाखाने की कोठरी में घुसना पड़ता है। वैसे ही कर्मसेना के साथ में मैं हो रहा हूं इसी लिये मुझे यह शरीर ग्रहण करना पड़ा है । और जब वह भगिन एक पाखाने से दूसरे पाखानेके लिये प्रस्थान करे तो वह राजकुमार शोचता है कि अव कहीं इससे भी अधिक दुर्गन्धित जगह में न जाना हो जावे इस भय से वहां से निकलने को आगापीछा साकने लगता है वैसे ही अज्ञानी जीव भी इस शरीर को छोड़ना नही चाहता और जब इस शरीर के छूटने की सुनता है तो कांपता है इसी का नाम मरण है । बस इसी का नाम