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ही छाया होती है और उसे बन्द करते ही वापिस घाम का घाम इत्यादि दुनियां के सभी कार्य अपने अपने निमित्त कारण के द्वारा होते हुये देखे जाते हैं फिर भी ऐसा कहना कि छाया छसे से नही किन्तु वहां के उन परमाणुओं की योग्यता से ही होती है यह कहना वैसा ही हुवा जैसा कि ईश्वर कटवादी लोग कहा करते हैं कि स्टाष्टि के सभी कार्य अपने कारण कलाप से नहीं होते किन्तु ईश्वर के किये होते हैं। हमारे प्राचार्यों ने तो, हमारे आचार्यों ने ही नहीं बल्कि सभी तर्क वादियों ने बताया है कि जो जिसके होने पर हो ही जावे और जिसके न होने पर जो न हो सके इस प्रकारका अन्वयव्यतिरेक जिसका जिसके साथ हो वह उसी का कार्य होता है। जबकि जीव रागादिमान होता है तो कर्म जरूर बनते हैं और वीत. रागी होने पर कर्म नहीं बनते अतः रागादिमान जीव ही कर्मों का कर्ता और उसके कार्य है कर्म यह ठीक बात है तथा वे सर्व कर्म इस जीवात्मा के द्वारा दो रष्टियों को लेकर किये जाते हैं अतः दो प्रकार के होते हैं सो ही नीचे बताते हैंपातुदेहात्मतयाक्रियेत पुण्यँतदन्तर्गतयाश्रियेतः । अज्ञानसँचेतनिकेतिधुचिरूपर्यंतोज्ञानमयीप्रवृतिः ॥२०॥
अर्थात्- यद्यपि हमारे यहां कर्म शब्द से उन सूक्ष्म पुद्गल परमाणुवों को कहा जाता है जो कि जीप के राग द्वेष भावों के द्वारा जीव के साथ एकमेक होकर रहते हो परन्तु उन